सात फेरो के सातों वचन

पड़ाव (अर्धांगनी रूप):

ऐसा नहीं था की मैं आज पहली बार कोई ब्लॉग लिखने जा रही थी, पर आज जब हमारे रिश्ते पर कुछ लिखने की बारी आयी तो मैं शायद थोड़ा नर्वस हो रही हूँ। मन में कई सवाल उठ रहें हैं की पता नहीं हमारे बारह साल के इस सफर को मैं अल्फ़ाज़ दे भी पाऊँगी की नहीं। क्या हमारी ज़िन्दगी के उन सभी खट्टी मीठी यादों को मैं शब्दों मे पीरों पाऊँगी?

खैर आज जब लिखना शुरू किया तो जैसे बारह साल का सफर किताब के पन्नो की तरह एक एक कर खुलता गया। और आज जब पीछे मुड़ के देखती हूँ तो अपने पापा की पसंद पर मुझे नाज़ होता है।

तो बारह साल का ये सफर कहाँ से शुरू करू? चलिए शुरू से शुरू करते हैं 🙂

जब मेरी मांग में तुम्हारे नाम का सिंदूर पड़ा और मैं सात वचनो में बांध तुम्हारी अर्धांगनी बनी।

शादी से पहले, शुरूआती दौर में कई बार रिश्ता टूटने की नौबत आ जाती है और जो हमारे साथ भी हुआ। और जिसपर कई बार मैंने तुम्हे निराश, तो कई बार गुस्सा होते हुए भी देखा था। पर उस दिन मंडप में मेरी मांग भरते ही खुशी से चौडा हुआ तुम्हारा छप्पन इंच का सीना मुझे आज भी याद है। जैसे तुम मन ही मन कह रहे हो “लो बना लिया इसे अपना, अब कोई कुछ कह के दिखाए”।

हमारे हनीमून की मनाली की वो यादें ज़हन में आज भी तारो ताज़ा है। चलती गाड़ी में, बाहर की बर्फीली पहाड़ियों का नज़ारा तुम्हे दिखाते ही, कैसे तुम झट से गुनगुना लगे “तेरे चेहरे से नज़र नहीं हटती नज़ारें हम क्या देखे” । आज भी जब कभी वो बातें याद आती है तो चेहरे पर एक मुस्कान आ जाती है ।

दिन बीतते गए और वक़्त के साथ हमारा रिश्ता और भी गहराता गया।

आज भी जब कभी मुझे रसोई में खाना बनाते वक़्त पसीने में डूबा देखते हो तो झट से बाहर का फैन ऑन कर देते हो। ठीक वैसे ही जैसे शादी के शुरूआती दिनों में एक टुटा टेबल फैन ठीक करके मेरी ओर घुमा दिया करते थे। “अब हवा लगेगी तुम्हे” और मैं उस पंखे की हवा में तुम्हारा मेरे लिए छुपा हुआ प्यार देख बस मुस्कुरा देती थी।

शादी के तीन महीने बाद ही कॉमनवेल्थ गेम्स जैसे बड़े ऑफिस में मेरी नौकरी का लगना, और लोगो का तुम्हे ताना मारना की “देख तेरी बीवी तुझसे भी ज़्यादा कमाती है ” “देख तेरी बीवी का ऑफिस कितना बड़ा है,अब तू भी बड़ी कंपनी में अप्लाई कर”।

सब ताने सुन कर भी मेरे लिए तुम्हारा प्यार रत्ती भर भी कम ना हुआ। और कैसे आज अपनी खुद की कंपनी शुरू कर तुमने सभी को अपनी काबिलियत का परिचय भी दिया है।

शुरुआती दिनों में हमारे पास गाड़ी नहीं थी तब भी हमारे सफर कितने सुहाने हुआ करते थे। हमारा साथ मे घर से ऑफिस के लिए शेयरिंग ऑटो में निकलना और शाम को साथ ही वापस लौटना, और लौटते समय शाम की वो चटपटी चाट का स्वाद तो जैसे आज भी याद है।

ओह कितने प्यारे दिन थे वो !!!

तुमने सिर्फ खुशियों में ही नहीं बल्कि ग़मों के दौर में भी मेरा हाथ कस के थामे रखा।

शादी की छः महीने बाद ही जब मुझे एक ऑपेरशन करवाने की लिए डॉक्टर ने कहा तो मुझे घबराता देख कैसे तुमने मेरा हौसला बढ़ाया पर मुझे ऑपरेशन थिएटर ले जाते वक़्त तुम खुद ही मेरा हाथ पकड़ एक बच्चे की तरह रो दिए।

ऑपेरशन के बाद जब कुछ ही दिनों में मैंने ऑफिस जाना फिर शुरू किआ तो तुम्हारा मुझे चार्टर्ड बस तक छोड़ कर आना और ड्राइवर भैया को बोलना की “भइया बस आराम से चलाना मेरी बीवी का ऑपेरशन हुआ है “, जिसपर पहले तो मैं थोड़ा झेप खा जाती पर फिर तुम्हारा मेरी इस तरह फिक्र करना मुझे अच्छा भी लगता ।

यूँ तो बिटिया हमारी जिंदगी में सात साल बाद आयी इसलिए जहाँ सात साल माँ न बन पाने का गम मुझे मन ही मन सताता, वही दूसरी ओर तुम्हारे साथ ये पल अब मेरी ज़िन्दगी के सुनहरे पल भी बनते जा रहे थे।

फिर चाहे हर बरसात में हमारा भीगना हो , या तिनका तिनका जोड़ कर हमारा छोटा सा आशियाना बसाना।

उन दिनों बिना जिम्मेदारियों के हम शायद बिगड़े हुए बच्चे ही बन चुके थे।  शनिवार इतवार देर से उठना, फिर मूवी के लिए निकल जाना और फिर एक के बाद एक दो मूवी साथ देखना और रात को देर से घर पहुंचना। वो दौर पति पत्नी से ज़्यादा बॉयफ्रेंड गर्लफ्रेंड सा ही लगता था मुझे।

हमारे इस सफर में खुशियों के साथ ग़मों का भी दौर आया। पर कहते है ना की आग में तप कर ही तो सोना कुंदन बनता है, तो ग़मों की आंच से हमारा ये रिश्ता और भी मजबूत ही हुआ।

अक्सर पति अपनी पत्नियों के लिए पहला करवाचौथ का व्रत रख लेते है पर शादी के बारह साल बाद, आज भी जब तुम मेरे लिए करवाचौथ का व्रत रखते हो तो ख़ुशी से ज़्यादा मुझे खुद पर गर्व होता है।

आज भगवान ने हमारा परिवार भी पूरा किया और अब हमारी बिटिया ने हमारा घर खुशियों से भर दिया है।

आज जब तुम दोनों को साथ हसते खेलते देखती हूँ तो मन को एक तस्सल्ली सी होती है, की कही अगर कल मैं ना रही, तो भी तुम अकेले नहीं होंगे, मेरे बाद मेरी बिटिया तुम्हारा ख्याल रखेगी।

यूँ तो कहने को बहुत कुछ है पर कुछ जज्बात बयां नहीं किये जा सकते। बस अब हमारी इन सुनहरी यादों को यहीं समेटूंगी। और दुआ करुँगी की आगे आने वाली ज़िन्दगी भी हम ऐसे ही हसते खेलते गुजारे।

 

यह ब्लॉग #सातपड़ाव ब्लॉगर चैलेंज के तहत लिखी गयी मेरी तीसरी और अंतिम कहानी है।

अगर आपको मेरा यह ब्लॉग पसंद आये तो मुझे कमेंट करके ज़रूर बताएं ।

 

Disclaimer: This blog was originally posted on Momspresso.com. This is a personal blog. Any views or opinions represented in this blog are personal and belong solely to the blog owner.

About The Author

Rama Dubey

I am a Communication Professional with more than 13 years of rich experience in Public relations, Media management, Marketing and Brand promotion.  Currently working as a Head- communication for an IT firm.

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