मुश्किल है, मगर वक़्त ही तो है… गुज़र जाएगा।

“रवि ज़रा रुको ! नाश्ता तो करो ” सुरभि नाश्ते की प्लेट उठाते हुए बोली।

“सुरभि अभी नहीं, आज एक अर्जेंट मीटिंग के लिए ऑफिस जाना है, लेट हो रहा हूँ”।

“हाँ, पर अभी तो कोरोना में सब घर से ही काम कर रहे है फिर …” कहते कहते सुरभि रवि को दरवाजे तक छोड़ने जाती है।

“पता नहीं.. वो तो ऑफिस जा कर पता चलेगा…”  बाय बच्चो ! जल्दी आ जाऊंगा। कहते कहते रवि अपनी बाइक स्टार्ट कर निकल जाता है।

रवि बीते सात साल से दिल्ली की एक छोटी कंपनी में नौकरी करता था और नॉएडा में वन बेड रूम के घर मे किराये पर  अपनी पत्नी सुरभि, दस साल के बेटे अमन और सात साल की बेटी रिया की साथ हसी ख़ुशी से अपनी ज़िन्दगी गुजर बसर कर रहा था। बीते कुछ दिनों से कोरोना के मद्देनज़र उसे ऑफिस का काम घर से करने को कहा गया था। पर कोरोना के इस दौरान मे उसकी कंपनी को अब खासा नुक्सान झेलना पड़ रहा था।आज रवि समेत कुछ और लोगो को भी ऑफिस बुलाया गया था।

ऑफिस मीटिंग में कंपनी के मालिक ने आज कोरोना का हवाला देते हुए कंपनी की माली हालत बताई। और जिसके तहत आज कंपनी ने  अपने स्टाफ की सैलरी को 75% कम करने का फैसला लिया था।

मीटिंग से बाहर आकर रवि अपनी सीट पर सर पकड़ कर बैठा ही होता है की उतने में उसका एक दोस्त उसे दिलासा देते हुए कहता है “यार तू टेंशन मत ले, बॉस ने कुछ ही महीने के लिए सैलरी कम करने को बोला है, जैसे ही हालात ठीक हो जायेगे सैलरी भी पूरी आने लगेगी”। पर रवि तो अपनी ही किसी सोच में डूबा होता है। टेंशन से अब रवि का चेहरा पीला सा पड़ जाता है।

“रवि तू सुन रहा है मैं क्या कह रहा हूँ” कंधे से झकझोरते हुए रवि का दोस्त कहता है। हम्म.. यार 25% सैलरी में मैं क्या क्या करूँगा। तू समझ नहीं रहा, मेरे घर में बहुत खर्चे है।स्कूल में बच्चो की फीस, उनकी कॉपी किताब, घर का किराया, और जो थोड़ी सेविंग थी उसे नई बाइक मे लगा दी, पर्सनल लोन लिया है उसका क़िस्त, घर खर्च अलग। मुझे ज़रा भी अंदाज़ा नहीं था इस तरह मार्किट ठप हो जायेगा और ये नौबत आ पड़ेगी। मैंने सोचा एक दो महीने के इंसेंटिव से आगे कुछ सेविंग हो जाएगी तो सब मैनेज हो जायेगा।

अब इंसेंटिव तो छोड़ो सैलरी भी कट गयी। कहाँ जाऊंगा अपने बीवी बच्चो को लेके। अपने में ही बड़बड़ाता हुआ रवि ऑफिस से घर निकल जाता है।

घर पंहुचा तो सुरभि उसका मायूस चेहरा पढ़ लेती है, इसलिए पहले रवि को थोड़ा आराम करने देती है फिर रवि खुद ही सुरभि को सारा  हाल कह सुनाता है। सुरभि थोड़ी हिम्मती थी तो रवि को हौसला देते हुए वो कहती है “रवि आप ज़ादा मत सोचो, हम अपने खर्चे थोड़े कम कर लेंगे”।  सब जल्द ही ठीक हो जायेगा।

एक एक कर दिन बितते जाते है और आज दो महीने बाद सुरभि हिम्मत और बड़े ही समझदारी से घर के खर्चो को संभल रही थी। और पूरी कोशिश करती थी की रवि को घर की किसी भी कमी के बारे में पता न चले। वो जानती थी की रवि दिल का कमजोर और थोड़ा ज्यादा ही भावुक है। वो अपने परिवार को मुसीबत में देख नहीं पायेगा।

आज सुबह रवि ने जब चाय का कप उठाया तो कप में बिना दूध की चाय देख थोड़ा हैरान हो गया।

सुरभि “तुम्हे पता है न मैं ब्लैक टी नहीं पीता”, मुझे दूध वाली चाय पसंद है। इतने में उसकी बेटी रिया बोल पड़ती है “पापा मम्मी ने दूध वाले भैया को दूध देने से मना कर दिया है।

अब तो मम्मी हमें रात में भी पीने के लिए दूध नहीं देती”। ये सुन रवि सब समझ गया की सुरभि ने पैसो की तंगी से दूध लेना बंद कर दिया था।

रवि निराश हो चाय का कप वापस रख देता है। की तभी उसका बेटा अमन कमरे से ही बोलता हुआ बाहर आता है, “मम्मी मेरी स्कूल बुक्स कब लाओगी” मैडम रोज़ पूछती है, और हमने स्कूल फीस भी जमा नहीं कीअब तक ?

“हाँ बेटा जल्दी ले आएंगे, तू तब तक अपने दोस्त से बुक्स मांग के काम चला लेना” सुरभि किचन से बोलती है।

ये सब सुन रवि परेशान हो वहाँ से उठ कर अंदर कमरे में चला जाता है। तभी रवि को उसके दोस्त का फोन आता है “हेलो रवि, अरे मेल चेक कर, बॉस का मेल आया है”। रवि मेल चेक करता है तो उसमे रवि सहित कंपनी के कुछ और लोगो को कम काम होने के नाते नौकरी से निकालने का मेल आया होता है।

रवि तुरंत ही अपने बॉस को फोन मिलाता है ।

“हेलो सर… ये मेल” ।

“पहले सैलरी कम करी और अब काम से ही निकल दिया”।

“रवि तुम मेरी भी हालत समझो”।  “हमारा काम भी ठप पड़ा है, मैं अब तुम लोगो को और सैलरी नहीं दे सकता”।

लेकिन सर … रवि के इतना कहते भर ही बॉस फोन काट देता है। दरवाजे पर खड़ी सुरभि सब सुन रही होती है।

रवि जैसे ही मुड़ता है तो पीछे सुरभि को खड़ा देखता है। रवि अब इस मुश्किल घडी और घर की तंगी  के लिए खुद को जिम्मेदार मान निराश हो अपनी नज़रें झुकाये कुछ सोचने लगता है।

सुरभि पास आ कर रवि का हाथ पकड़ उसकी हिम्मत बांधती है और जैसे बिना कुछ कहे ही वो उससे बहुत कुछ कह जाती है।

जैसे जैसे दिन बितते जाते है रवि अब मन ही मन घुटता और निराशा के अंधेरो में डूबता चला जाता है। कई रातें रवि अब जागते ही गुजर देता था। रवि की रातों की नींद जैसे उड़ सी गयी थी।

उस रात भी रवि बस इसी सोच में डूबा था की हम कहाँ जाएंगे, हमारा तो कोई गांव भी नहीं की लौट कर चले जाये, और न ही हम गरीब कोटा में आते है की कुछ दिन मुफ्त का राशन मिलेगा।

हम तो लोवर मिडिल क्लास के वो लोग है जो अपनी सारी उम्र सपने देख कर ही काट देते है की कभी तो हमारे भी अच्छे दिन आएंगे।

इस वक़्त तो कहीं कोई नौकरी भी नहीं है, मैं क्या करू कुछ समझ नहीं आ रहा। किसी से उधर भी कैसे मांगू सब की हालत एक जैसी ही है। सोचते सोचते रवि अपना सर पकड़ लेता है

कितना खर्चा कम करेंगे और कब तक ? पता नहीं ये महामारी का दौर कब तक रहेगा? मुश्किल से अब महीने भर का और राशन बचा होगा । घर का दो महीने का किराया भी देना है। कभी नहीं सोचा था की ज़िन्दगी ऐसे मोड़ पर ला कर खड़ा कर देगी। इतना मजबूर तो पहले मै कभी ना था।

घर का मर्द होकर भी मैं अपने परिवार की जरुरत पूरी नहीं कर पा रहा हु, मेरे रहने न रहने से क्या फायदा ।

दिमाग में चल रही कश्मकश के बीच रवि उठ कर पानी पीने जाता है, की उसकी नज़र साथ सो रहे उसके बच्चो पर पड़ती है। कैसे वो पहले अपने बच्चो की हर ख्वाहिश बिन मांगे ही पूरी कर दिया करता था। पर आज तो जैसे रवि निराशा की इस हद तक डूब चूका था की उसने अब अपने खुद के अस्तित्व पर ही सवाल खड़ा कर दिया था।

अब उसकी आगे सोचने समझने की शक्ति जैसे ख़तम हो चुकी  थी। और अब इस समस्या से निकलने के लिए उसे खुदखुशी ही एक मात्र विकल्प सूझता है।

पास रखा सुरभि का दुपट्टा ले वो अब उसका फंदा पंखे में टांग देता है और एक स्टूल पर चढ़ जाता है।

इस पल अब जैसे उसके दिमाग की हलचल और तेज़ हो जाती है। आँखों में आसु लिए वो अब उस स्टूल पर चढ़ फंदा अपने गले में डाल लेता है और अपने मन में चल रहे इस शोरशराबे को शांत करने के लिए अपनी आंखे मूँद लेता है।

बाहर से आ रही स्टूल की आवाज से सुरभि की आंख खुलती है, वो थोड़ा इधर उधर देखती है तभी स्टूल पर खड़े रवि को देख जैसे वो हैरान रह जाती है।

हड़बड़ी में जैसे ही वो बिस्तर से उठकर भागती है उतने में रवि पैरो के झटके से स्टूल को गिरा देता है।

सुरभि एक पल की भी देरी किये बिना रवि को पैरों से ऊपर की तरफ उठती है ताकि फंदा उसके गले में कस ना पाए।

“नहीं रवि नहीं…”।

“रवि… रवि… साँस लो रवि….”।

अमन… अमन… रिया … जल्दी आओ ।

सुरभि की आवाज सुन अमन रिया नींद से जाग जाते है और दौड़ कर आते है।

“माँ … पापा को ये क्या हो गया … ”

अमन स्टूल.. स्टूल .. लगा..।  पा… पापा.. के पैरो के नीचे …

सुरभि इस पल, सदमे से इस कदर हिल चुकी थी की उसके मुँह से अब शब्द भी नहीं निकल पा रहे थे। पर फिर भी उसने हिम्मत से काम लिया।

इतने मैं उसकी बेटी रिया फंदा काटने की लिए चाकू ले आयी।

सुरभि ने फंदा काट अब रवि को नीचे उतरा।

चंद पालो के झटके से रवि अभी होश में नहीं था। सुरभि ने उसके मुँह पर पानी झिड़का और चेहरे को थप थपाया।

“रवि उठो …आंखें खोलो रवि …”

“पापा कुछ बोलो ना..”  रोता हुआ अमन पापा को हिलाते हुए कहता है।

“पापा मैं अब आपसे कोई शिकायत नहीं करुँगी..  मुझे अब दूध भी नहीं चाहिए पीने की लिए पापा… आप कुछ बोलो ना पापा…” आँखों से आंसू पोछते हुए रिया बोलती है।

की कुछ ही देर में रवि को होश आ जाता है।

जिस तरह सुरभि ने एक भी पल गवाएं बिना तुरंत ही रवि के पैरों को उप्पर उठा दिया था उससे रवि का फंदा ढीला पड़ने से रवि की जान बच गयी थी।

रवि खासते हुए उठता है तो अपने पास सुरभि और अपने बच्चो को रोता देखता है। मुझे माफ़ कर दो तुम सब, मैं तुम लोगो का गुनहगार हूँ।मैं तुम लोगो को दो वक़्त की रोटी तक नहीं खिला सकता तो मुझे जीने का कोई हक़ नहीं।

रवि अभी कुछ भी मत बोलो। इस घडी के लिए तुम खुद को दोष मत दो। ये संकट सिर्फ हम पर ही नहीं सब पर आया है। हम इतनी जल्दी हिम्मत नहीं हारेंगे रवि। तुम ही तो कहते हो जिंदगी संघर्ष का नाम है तो फिर तुमने इतनी जल्दी हार कैसे मान ली रवि। रोती हुई सुरभि अपनी सिसकती हुई आवाज में बोलती है।

हमें बस सही समय का इंतज़ार करना है रवि। अभी इंसान नहीं बस हालात और वक़्त ख़राब है। हम सब साथ होंगे तो ये मुश्किल वक़्त भी बीत जायेगा।

रवि अपने बच्चो और सुरभि को रोता देख उनसे माफ़ी मांग उनको गले लगा लेता है। और उनसे वादा करता है की इस मुश्किल की घडी में वो हार नहीं मानेगा।

 

दोस्तों, कोरोना एक ऐसी वैश्विक महामारी है जिसने एक तरफ जहाँ विश्व में लाखों लोगो की जान ली है, वहीँ दूसरी तरफ विश्व आज आर्थिक मंदी के दौर से भी गुजर रहा है। जिसका परिणाम छोटे से बड़े हर उद्योग और कारोबार जगत पर पड़ा है।

समाज के हर तबके का इंसान इस आर्थिक मंदी से प्रभावित हुआ है। कही किसी को अपनी नौकरी गवानी पड़ी है तो कही किसी का कारोबार चौपट हुआ है । इस मुश्किल की घडी में आपका परिवार ही आपकी सबसे बड़ी ताकत है। इसलिए जरुरत है तो थोड़ा धीरज और संयम से काम लेने की।

और अगर आप आर्थिक रूप से सक्षम है तो इस मुश्किल घडी में किसी जरुरतमंद की मदद जरूर करें। आपकी छोटी सी भी मदद उनके लिए एक बड़ा सहारा हो सकता है।

श्री अमिताभ बच्चन जी ने ऐसे में कुछ बड़ी ही उम्दा पंक्तिया कहीं है…”मुश्किल बहुत है .. मगर वक़्त ही तो है … गुजर जायेगा.. “।

“गुजर जाएगा, गुजर जाएगा मुश्किल बहुत है, मगर वक्त ही तो है गुजर जाएगा, गुजर जाएगा…

जिंदा रहने का ये जो जज्बा है फिर उभर आएगा गुजर जाएगा, गुजर जाएगा…

माना मौत चेहरा बदलकर आई है, माना मौत चेहरा बदलकर आई है,

माना रात काली है, भयावह है, गहराई है लोग दरवाजों पे रास्तों पे रूके बैठे हैं, लोग दरवाजों पे रास्तों रूके बैठे हैं,

कई घबराये हैं सहमें हैं, छिपे बैठे हैं मगर यकीन रख, मगर यकीन रख ये बस लम्हा है दो पल में बिखर जाएगा

जिंदा रहने का ये जो जज्बा है, फिर असर लाएगा मुश्किल बहुत है, मगर वक्त ही तो है गुजर जाएगा, गुजर जाएगा”।

अगर आपको मेरा यह ब्लॉग पसंद आया हो तो मुझे कमेंट बॉक्स में लिख कर ज़रूर बताये और हाँ मेरा प्रोफाइल फॉलो करना ना भूलें।

धन्यवाद !

 

Disclaimer: This blog was originally posted on Momspresso.com. This is a personal blog. Any views or opinions represented in this blog are personal and belong solely to the blog owner.

About The Author

Rama Dubey

I am a Communication Professional with more than 13 years of rich experience in Public relations, Media management, Marketing and Brand promotion.  Currently working as a Head- communication for an IT firm.

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