पतिदेव के साथ पहली डेट

पतिदेव के साथ पहली डेट

आज लैपटॉप पर मेरे हाथ कुछ ज़्यादा ही तेज़ चल रहे थे। सारी मीटिंग्स खत्म करके और मेल्स भेज कर मुझे आज जल्दी निकलना था। दरअसल आज मेरी, मेरे होने वाले पति के साथ “पहली ऑफिशियल डेट” थी।

ऑफिशियल डेट इसलिए, क्योंकि शादी तय होने के बाद की डेट पर मम्मी पापा की मंजूरी की मोहर लगी होती है और चोरी छुपे मिलने या पकडे जाने का डर नहीं होता।

खैर, ऑफिस का काम निपटा कर मैं थोड़ा टच-अप करने वाशरूम गयी। आज मैंने सफ़ेद चूड़ीदार सूट पहना था और उसपर फुलकारी का दुपट्टा लिया था। माथे पर कुमकुम की छोटी सी बिंदी और कानो में झुमके भी डाले थे| खुले बालो में आज मैं थोड़ी ज़्यादा ही सुन्दर लग रही थी। शीशे में खुद को देख कर, “कभी ख़ुशी कभी ग़म” मूवी की “पू” का डायलाग याद आ गया। “उफ़, तुम्हे कोई हक़ नहीं कि तुम इतनी खूबसूरत लगो”।

पापा मम्मी ने पास की सोसाइटी के दुबे जी के बेटे विनोद से मेरी शादी तय की थी। विनोद और मेरी आज पहली डेट थी, इससे पहले हम एक बार और मिले थे परिवार के साथ, तो कुछ खास बात नहीं हो पायी थी। इसलिए विनोद ने ही पहल करके मुझे पास ही के मॉल में मिलने बुलाया था।

ऑफिस का काम फिनिश करके मैं अपनी फ्रेंड के साथ निकली, उसने मुझे मॉल तक ड्रॉप किया और जाते जाते मुझे आंख मर कर “Best of Luck” बोल गयी। अब वो “Best of Luck” किस बात का था, मैं आज तक समझ नहीं पायी।

 

खैर मैं मॉल के फ़ूड कोर्ट पहुंची। मुझे लगा विनोद पहले से ही हाथों में फूलों का गुलदस्ता लिए मेरी राह तक रहें होंगे और मेरे आते ही घुटनों के बल बैठ कर मुझे एटलीस्ट “I LIKE YOU” तो बोल ही देंगे। पर जनाब ऐसा कुछ नहीं हुआ, मैं मॉल पहुंची तो वहां विनोद मियां अब तक पहुंचे ही नहीं थे। फोन किया तो पता चला की किसी प्रोजेक्ट की अर्जेंट डिलीवरी है तो आने में थोड़ा टाइम लगेगा।

हम्म!

अब चूँकि वीक डे था, तो मॉल भी थोड़ा खाली खाली सा था और न जाने क्यों मुझे ऐसा लग रहा था जैसे फ़ूड कोर्ट के काउंटर से सारे भैया लोग मुझे ही घूर रहे थे। अब भला घूरे भी क्यों ना, मैं भी पूरा ढिंचैक गेटअप में जो आई थी। भई, इंतज़ार करते करते अब आधा घंटा बीत चूका था और अब तक विनोद जी का कोई अता पता नहीं था। मैंने सोचा तब तक मैं फ़ूड टोकन ही ले लूँ। टोकन लेकर अभी बैठी ही थी की दूर से कोई आता दिखा। ये हमारे दूल्हे राजा ही थे। दूर से उन्हें देखते ही मैंने सोचा “इसे क्या हुआ, ये डेट पे आया है”?

पीले रंग की शर्ट, जिसपर शायद खाते वक़्त सब्जी गिर गयी होगी और उस धब्बे ने उस पीली शर्ट को और भी पीला कर दिया था। बिखरे बाल, मुँह पर पसीना और हाथ में एक पिन्नी लटकाये, मिया जी चले आ रहे थे। आप बस यूँ समझ लीजिये जैसे बॉलीवुड का नवाज़ुद्दीन सामने से चला आ रहा हो। ये आये और सामने बैठे, जहाँ एक ओर मेरी रेशमी जुल्फें उड़ कर मेरे चेहरे पर आ रही थीं, वहीं दूसरी ओर मिया जी के चेहरे से पसीना टपक रहा था। भगवान कसम, उस पसीने ने रोमांस की ऐसी तैसी कर दी थी। खैर, गुलदस्ता ना सही, मुझे लगा हाथ में पिन्नी है तो चलो शायद कुछ मिठाई विठाई ही लाए हों। पूछा तो पता चला कि ये तो भाईसाहब का टिफ़िन बॉक्स है, जो उनकी माँ रोज़ सुबह अपने लाडले बेटे को देती है। दौड़ के आने से इनकी सासें फूली थीं।

 

“हाय! रमा, कैसी हो? थोड़ा लेट हो गया सॉरी!!”

“हम्म इट्स ओके” मैंने भी गर्दन हिलाते हुए कह दिया।

“कुछ खाओगी? इन्होने पुछा।

“आप बैठो, मैंने फ़ूड टोकन ले लिया है और मुझे पता है आपको चाऊमीन बहुत पसंद है तो मैंने आर्डर भी कर दी है। मैं ले के आती हूँ”। मैंने बोला।

” अरे वाह!!” ये ख़ुशी से बोले।

“तो जनाब, मैंने अपनी फर्स्ट डेट पर पतिदेव के लिए अपने पैसो की चौमिन आर्डर की और खिलाई।अब चूँकि ये भूखे थी तो झट से सारी चौमिन भी फिनिश करने लगे। और मैं खाते हुए अपने पति का मुँह निहार रही थी। और सोच रही थी, कोई बात नहीं रमा, भूखे को खाना खिलाने से पुण्य ही मिलता है।

आप कुछ और लेंगे ?? मैं आर्डर कर दूँ  ?? मैंने विनोद से पुछा।

खाते खाते ये बोले : “हाँ थोड़ा एक बोतल पानी भी ले आओ ” ।

“अच्छा.. पानी ले आऊं “!! मैंने घूरते हुए बोला।

मन तो किया उसी पानी के बोतल को खोल कर नहला दूँ!! पर चेहरे पर हलकी सी मुस्कान के साथ मैं अब इनके लिए पानी ले कर आयी।

चाऊमीन का बाउल आगे खिसका कर इन्होने मुझे भी ऑफर किया। “आपने तो कुछ खाया ही नहीं”।

मैंने मन में बोला :पहले आपका पेट भर जाये फिर मैं खाऊं! पर गर्दन हिला कर मैंने “नो थैंक्यू” भर ही बोला।

अब ये खाने में लगे थे और मैं आस पास बैठे दूसरे कपल्स को घूर रही थी। एक डकार के साथ, वो चौमिन अब फिनिश हो चली थी। पेट भरा तो इनका दिमाग खुला की ये डेट पर आये थे लंगर में नहीं।

 

“मैं आपके लिए कुछ ले आता हूँ”।

ओके, “ये फ़ूड टोकन ले लीजिये ” मैंने फ़ूड कार्ड पकड़ाते हुए कहा।

कार्ड लेके ये काउंटर की ओर आगे बढे ही थे की मॉल की लाइट चली गयी, सब तरफ अँधेरा छा गया। इतने मे मेरे गालों पर किसी ने एक छोटी सी प्यारी सी किस्स ली। जब तक मैं कुछ समझ पाती, लाइट वापस आ गयी और ये मुस्कुराते हुए आगे बढ़ गए।

हस्ते हुए मैंने सोचा की, लड़का बड़ा चालू है, फर्स्ट डेट पर ही मौके पर चौका मार लिया। या शायद चौमिन खिलाने का इनाम मिला होगा।

तो जनाब ऐसी थी मेरी पहली Official Date जिसे आज भी याद करो तो चेहरे पर मुस्कान आ जाती है।

और शादी के बाद पता चला की दरसल वो डेट वाला नवाज़ुद्दीन तो “मांझी मूवी” का नवाज़ुद्दीन निकला जो अपनी पत्नी के प्यार में ताजमहल ना सही पर हाँ पहाड़ तोड़ के रास्ता ज़रूर बना सकता है और मुझे मेरे नवाज़ुद्दीन पर गर्व है।

दोस्तों, इंसान की अच्छी शक्ल सूरत, पहनावा और स्टाइल तो कुछ दिनों का ही छलावा होता है, इंसान की असली पहचान तो उसके वयक्तित्व, उसकी समझ , और सपोर्टिव नेचर सी होती है।

 

अगर आपको मेरी यह कहानी पसंद आयी हो तो मुझे कमेंट करके ज़रूर बताएं ।

धन्यवाद!

 

Disclaimer: This blog was originally posted on Momspresso.com. This is a personal blog. Any views or opinions represented in this blog are personal and belong solely to the blog owner.

 

About The Author

Rama Dubey

I am a Communication Professional with more than 13 years of rich experience in Public relations, Media management, Marketing and Brand promotion.  Currently working as a Head- communication for an IT firm.

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