आज सुबह ऑफिस आने में थोड़ी देर हो गयी थी। खैर, ऑफिस पहुंची और जोर से बैग पटक कर, अपना सर पकड़ते हुए मैं प्रकाश से बोली “प्रकाश, आज ज्यादा सवाल मत पूछना जितना हो सके खुद से ही काम निपटा लेना और आज कोई मीटिंग नहीं प्लीज”।
आज मेरा मूड थोड़ा ज़्यादा ही अपसेट था। प्रकाश ऑफिस में मेरे साथ, मेरे ही डिपार्टमेंट में काम करता था। वो कहते हैं ना, जैसे दिन के बाद रात और खुशियों के बाद गम आता ही है, तो आप बस यूँ समझ लीजिये कि मेरी ज़िन्दगी में वो रात वाला दौर ही चल रहा था और मैं अपनी ज़िन्दगी से अब पूरी तरह से मायूस और हताश हो चुकी थी। अब ऑफिस आती भी तो सिर्फ इसलिए कि थोड़ा ध्यान भटका सकूँ और कुछ पल सुकून का पा सकूँ।
तभी ऑफिस के लैंडलाइन फोन की घंटी बजी।
प्रकाश : मैम, बॉस का फोन है।
हम्म.. Yes sir.. ok sir… ok sir.. sir.. me ?? ok fine ..i will go..
फोन पटकते हुए मैंने प्रकाश को देखा और बोला, “तैयारी करो ..चलना है”|
बॉस का फरमान आया था कि दिल्ली में कोई इवेंट था तो उसकी मीडिया कवरेज हमें करवानी थी और इसलिए बॉस चाहते थे कि मैं खुद वहां जा कर इवेंट कवर करूँ।
बस फिर क्या, जून की कड़ी धुप में मैं और प्रकश पहुंच गए इवेंट कवर करने।
“प्रकाश ये इवेंट तो तुम भी संभाल सकते थे, मेरे आने की ज़रूरत नहीं थी| वैसे भी ऑफिस में काफी काम पड़ा था” रुमाल से पसीना पोछते हुए मैंने कहा। “पता नहीं भगवान क्या चाहते है, वैसे ही ज़िन्दगी में कम स्यापा है? और उस पर ये…”!
“अरे मैडम जी, आप वहां छांव में जा कर बैठिये, मैं कुछ फोटो क्लिक कर के आता हूँ” प्रकाश कैमरा उठाये वहां से जाने लगा।
“हम्म ..ठीक है !”
बैठे बैठे मैं यहाँ वहां देख रही थी कि मेरी नज़र उस इवेंट में आते स्कूल के छोटे छोटे बच्चों पर पड़ी। वो बच्चे आटिज्म, जो कि एक मानसिक विकार होता है, उससे पीड़ित थे। आटिज्म बच्चों के लिए कुछ स्पेशल स्कूल्स होते हैं और वैसे ही कुछ स्कूल उस दिन उस इवेंट में शामिल होने आये थे। मैंने ऐसे बच्चों को पहले भी देखा था, पर कभी उनके पास गयी नहीं थी या उनसे बात नहीं की थी।
तभी शायद मेरे हाथ में रिकॉर्डर देखकर एक बच्ची मेरे पास आ कर खड़ी हो गयी। पहले मैं समझ नहीं पायी कि मैं कैसे रियेक्ट करूं, कहीं मेरे किसी बात से बच्ची नाराज़ ना हो जाये या वो डर ना जाये। फिर भी मैंने प्यार से उस बच्ची से पूछा “आपको ये चाहिए”? वो मेरे पास आयी और मेरे हाथ से रिकॉर्डर ले कर देखने लगी।
मैंने उसका नाम पूछा, पर वो मासूम तो अपना नया खिलौना देखने में व्यस्त थी। तभी प्रकाश भी वहां आ पंहुचा। मैंने उस बच्ची का हाथ पकड़ उससे पूछा “आप मेरे साथ फोटो खिचवाओगे”?
इतना सुन कर बच्ची ने मेरे हाथों से अपना हाथ छुड़ा लिया। मुझे लगा शायद वो किसी अनजान से बात करने में डर रही थी। इसलिए मैं उठ कर जाने के लिए तैयार होने लगी कि इतने में बच्ची ने अपना हाथ मेरे गले में डाला और मुझे एक प्यारी सी झप्पी दी। शायद वो फोटो के लिए पोज़ दे रही थी।
प्रकाश ने तुरंत कुछ फोटो भी खींच ली। इतने में बच्ची की मैडम आ गयी और उसे वहां से ले गयीं। बच्ची पीछे मुड़कर मुस्कुराते हुए मुझे बाय कर के जाने लगी। मुझे अहसास हुआ कि शायद इसे ही जादू की झप्पी कहते थे। ये मेरी ज़िन्दगी की पहली “जादू की झप्पी” थी।
उस बच्ची की जादुई झप्पी मुझपर कुछ अलग ही असर कर गयी और मैं सोचने लगी कि मेरा इस इवेंट में आना, उस बच्ची का मिलना और यूँ प्यार से मुझे गले लगाना, आज मुझे अपने जीवन की सबसे बड़ी सीख दे गया।
हम अपनी जिंदगी के छोटे छोटे ग़मों को खुद पर इतना हावी होने देते हैं कि कई बार तो डिप्रेशन तक की नौबत आ जाती है। पर आज भी दुनिया में ऐसे लाखो लोग हैं जो दिव्यांग हैं, फिर भी वे लोग बिना किसी गीले शिकवे के, अपना जीवन बड़ी सरलता से जीते हैं और सिर्फ जीते ही नहीं बल्कि दूसरों की लिए मिसाल तक कायम करते हैं।
दोस्तों, भगवान ने हमें शारीरिक और मानसिक दोनों रूप से सक्षम बनाया है| ये ही हमारे लिए वरदान स्वरूप है। बस कई बार हमारा देखने का नजरिया बदल जाता है। हम पानी से आधे भरे गिलास का खाली हिस्सा तो देखते हैं पर उसके भरे हिस्से को हमेशा नज़रअंदाज़ कर देते हैं।
बस उस दिन के बाद से अब जब भी कभी कोई टेंशन मुझ पर हावी होती है तो मैं ये सोच कर शांत हो जाती हूँ कि मेरी परेशानी उन हज़ारों लोगों की परेशानियों के आगे कुछ नहीं जिनके पास ना तो रहने के लिए छत है और ना खाने के लिए दो वक़्त की रोटी।
अगर आपको मेरी यह कहानी पसंद आयी हो तो मुझे कमेंट करके ज़रूर बताएं ।
धन्यवाद!
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I am a Communication Professional with more than 13 years of rich experience in Public relations, Media management, Marketing and Brand promotion. Currently working as a Head- communication for an IT firm.
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Rama Dubey
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