छुट गई सांसो की डोर

रोज़ की तरह आज भी मैं और मेरी १२ साल की बेटी गुड़िया शाम को फैक्ट्री से थके हारे घर को लौटे , फिर गुड़िया हमेशा की तरह पानी भरने चली गयी और मैं घर के काम काज में व्यस्त हो गई।

आज रह रह कर मन में एक अनजाना डर सा लग रहा था, दिल जैसे बैठा सा जा रहा हो । तभी गुड़िया के पापा घर लौटे और बोले की “मालिक ने कल से गमछा से मुँह ढक कर आने को बोला है , कोई बीमारी फ़ैल रही है कोरोना” । “अजी सही कह रहे है, आज सुषमा की माँ भी कुछ बता रही थी की ये कोई महामारी फैली है हैजा जैसी, ये बीमारी छूने से फैलती है” , “सुनिए हमें तो कुछ नहीं होगा न जी” मैंने डरते हुए उनसे पुछा, दिलासा देते हुए ये बोले “अरे नहीं कुछ नहीं होगा, ला खाना ला भूख लगी है”।

उसी रात दरवाजे पर पड़ोसी सुरेश भैया दौड़ते हुए आये और बोले “सरकार ने सब बंद कर दिया है वो कोरोना फैला है न उसी वजह से” , “मालिक भी बोला कल से फैक्ट्री बंद रहेगी सरकार ने सब बंद करने को बोला है इसलिए”।

मैं बोली “अरे भइया ऐसे कैसे” वो बोले “ये बीमारी छूने और छींकने से फ़ैल रही है तो सरकार कहती है जहाँ हो वही सुरक्षित रहो”।

अभी सब बाहर बतिया ही रहे थे की मैं झट से कमरे में आ कर डब्बे टटोलने लगी, “अब तो राशन भी बस २ – ३ दिन का ही है” ।

गुड़िया के पापा पूछे “भइया मालिक कुछ तनख्वा एडवांस देगा क्या”, अरे मालिक बोला है “अब फैक्ट्री खुलने पर ही कुछ पैसा मिलेगा” ।

पूरी रात हमने इसी सोच में निकल दी की अब हम यहाँ क्या करेंगे, क्या खाएंगे, गांव चले जाते तो ही सही रहता , पर ट्रैन बस सब बंद है, यहीं पर दिन काटने होंगे जब तक सब ठीक न हो जाए।

सुबह उठते ही गुड़िया बोली माँ आज काम पर नहीं जाना क्या? , मैंने उसे सब बताया पर अपनी उदासी न छुपा पायी , मुझे हताश देख गुड़िया बोली, “माँ चिंता क्यों करती हो सब ठीक तो है” , पता नहीं उस नन्ही सी बच्ची में इतनी समझ कहाँ से आ जाती है।

एक एक करके दिन बीतते जा रहे थे मन में बेचैनी और हमारी दिक्कते बढ़ती जा रही थी , राशन खत्म हो चूका था और अब बस अपने गांव जाना ही एक आसरा बचा था।

तभी गुड़िया के पापा बोले “बोरिया बिस्तर बांधो गांव चलते है यहाँ की कुछ और लोग भी जा रहे है साथ निकल चलेंगे”। जहाँ एक तरफ अपने घर लौटने की ख़ुशी थी वही १५० किलोमीटर पैदल सफर करने पर दिल रजामंदी नहीं दे रहा था। गांव जाने की बात सुनते ही गुड़िया खिलखिला उठी , खुश हो भी क्यों न गांव में उसका घर, खेत, सगे सम्बन्धी , बचपन के दोस्त सभी तो थे वहाँ।

अगले दिन सुबह कुछ खाने का सामान और घर की जरुरी चीजे सर पर लादे हम अपनी मंजिल पर निकल पड़े.रस्ते भर गुड़िया सबको अपने गांव की कहानियाँ सुनती जा रही थी। गांव में आम और जामुन का बगीचा याद करते उत्साहित हो गुड़िया पूछी “माँ अब तो आम पक गए होंगे ना? कब तक पहुंचेंगे माँ “? जैसे जैसे दिन चढ़ता जाता सफर और मुश्किल होता जाता किसी तरह २ दिन का सफर पूरा हुआ बस अब और एक कदम बढ़ाने की हिम्मत ना होती पर अब उस दोराहे ार थे जहाँ से लौटना मुश्किल था ।

गुड़िया थकती तो बैठ जाती पर फिर शायद अपनी मंजिल याद करती तो चेहरे पर मुस्कान लौट आती और फिर खड़ी हो जाती। उस दिन सुबह गुड़िया कुछ ज़ादा ही थकी हारी लग रही थी। मैंने उसे कुछ खाने को दिया पर उसने मना कर दिया, कहा की “माँ पेट में दर्द हो रहा है अब और कितना चलना है माँ “, मैं बोली “बस बेटा ५० किलोमीटर और रह गया है ,अब आ ही गया थोड़ा और बिटिया”, कहते ही मैंने पीछे मुड़ के देखा तो गुड़िया सड़क पर बेहोश पड़ी थी।

“बिटिया उठ देख गांव आ गया बिटिया” , “उठना कुछ बोल मेरी बिटिया” , पर वो बेसुध पड़ी थी।

मैं रो रो कर मदद की गुहार लगा रही थी, “कोई बचाओ मेरी बच्ची को” पानी की छीटें मारी पर गुड़िया ज़रा भी ना हिली, उसका बेजान देह मेरी हाथो में था। हमें क्या पता था मेरी नन्ही बच्ची हमारे साथ अपने अंतिम सफर पर निकली थी और हमारा साथ यु छोड़ देगी।

आज हम गांव तो पहुंच गए पर हमारा कोई अपना रास्ते में ही छूट गया।

लोकडाउन के दौरान कई राज्यों से हजारो की संख्या में कई प्रवासी मजदूरो ने अपने अपने गाँवो का पलायन किया उसमे १२ साल की एक बच्ची भी थी. जिसने तेलंगाना से छतीशगढ से अपने गांव का १५० किलोमीटर का सफर अपने माता पिता के साथ पैदल शुरू किया पर अपने गांव से महज ५० किलोमीटर की दुरी पर ही उस बच्ची ने दम तोड़ दिया।

ख़बरों की माने तो वह बच्ची अपने माँ बाप की एकलोती औलाद थी। बच्ची कोरोना नेगेटिव पायी गई उसकी मौत की वजह भूख और लम्बा सफर तय करने के कारण ज़ादा थकान माना जा रहा है।आज हम इस लोकडाउन के समय में भी अपने अपने घरो में अपने परिवार के साथ पूरी तरह से सुरक्षित और संपन्न है। ज़रा उन देहाड़ी मजदूरों की सोचिये जो हर दिन कमाते है और जिन्हे अपने घरो और परिवार से दूर रहना पड़ रहा है, कुछ तो मजबूर होकर अपने गांव का पलायन कर चुके है पर इसकी उन्हें इतनी महंगी कीमत चुकानी पड़ रही है।

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About The Author

Rama Dubey

I am a Communication Professional with more than 13 years of rich experience in Public relations, Media management, Marketing and Brand promotion.  Currently working as a Head- communication for an IT firm.

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