मेरी राह न तकना…

आज अपनी 3 साल की बिटिया को स्कूल से लेने गई थी। स्कूल का गेट खुलने पर जब मेरी नन्ही परी दौड़ कर “मम्मा मम्मा” कह कर मेरे गले लग जाती है तब वह एहसास मानो पूरी जिंदगी को बस एक लम्हे में समेट देता है। उस रोज़ भी वही हुआ, बिटिया दौड़ कर गले लग गई और बताया की आज मैंने एक नयी दोस्त बनायीं है, मैंने पूछा “अच्छा कौन, बेटा?” तो झट से बोली उसका नाम ‘नव्या’ है मम्मा।

पास ही नव्या की मम्मी भी खड़ी थी तो दो छोटी सहेलियों ने हमारी मुलाकात भी करवा दी। नव्या की मम्मी बहुत ही शांत और शीतल स्वाभाव की लगी। फिर नव्या अपनी माँ के साथ स्कूटी पर और हमारी शहज़ादी अपनी मम्मा की स्कूटी पर एक दूसरे को कल मिलने का वादा कर अपने अपने घरों को निकल पड़े।

अगले दिन दोपहर में बिटिया को स्कूल लेने पहुंची तो रानी बिटिया थोड़ा उदास थी, बोली “मम्मा आज नव्या नहीं आई”। मैंने भी दिलासा देते हुए बोला, “बेटा तबियत ख़राब होगी, कल आ जाएगी”, और वापस घर लौट आये।

ऐसे ही दो दिन और बीत गये, ना नव्या दिखी ना नव्या की माँ।

एक दिन मैंने भी मैडम से युही पूछ डाला, “मैडम नव्या नहीं आई बहुत दिनों से”। मैडम एक बार को सकपकाई और फिर लड़खड़ाती आवाज में बोली , आपको नहीं पता? मैंने हैरानी से पुछा, “क्या नहीं पता “। वो बोली दो दिन पहले नव्या, उसकी माँ और पापा का हाईवे पर एक एक्सीडेंट हो गया था। एक ट्रक ने उनकी स्कूटी को पीछे से टक्कर मार दी। नव्या और उसके पापा तो बच गये पर नव्या को बचाते हुए उसकी माँ ट्रक के नीचे आ गई। और मौके पर ही उन्होंने दम तोड़ दिया।

मैं कुछ देर के लिए सुन रह गई, ” पर दो दिन पहले ही तो मेरी बात हुई थी”। उस पर मैडम बोली, “हाँ उसी रात को हुआ है एक्सीडेंट”।

अब उसके आगे ना पूछने को कुछ बचा था और ना कहने को। बिटिया को घर तो ले आई पर मन पता नहीं कहाँ भटक रहा था।

कुछ और दोस्तों से पता चला की नव्या शादी के सात साल बाद आई वी ऍफ़ से हुई थी। हे भगवान! आपका ये कैसा नियम कानून है। उस नन्ही बच्ची का क्या कसूर है उसे कैसे समझाओगे की उसकी माँ कहाँ गई है, और कब लौट कर आएगी और अगर नहीं आएगी तो क्यों नहीं आएगी?

पूरा दिन पूरी रात बस इसी सोच में गुजार दी की अपने बाद परिवार की पैसो की जरूरतों को पूरा करने की लिए तो लाइफ इंशोरेंस है, पर क्या कोई ऐसा भी इंशोरेंस है जो आपके बाद आपके नन्हे मुन्नो को वैसा ही प्यार दुलार दे सके। आपकी की तरह उसे अपनी गोदी में ले कर सीने से लगा कर सुला सके। उसके हाथो को चुम कर गुदगुदा सके। पल भर में उसके साथ हस कर, रो भी सके। उसके साथ उसी के उम्र का बन कर खेल सके।

एक माँ के जाने के बाद क्या एक पिता माँ की जगह ले सकता है ? शायद हाँ या शायद नहीं भी। जितनी सहनशक्ति और ममता माँ में होती है उतना शायद एक पिता में नहीं होती, शायद इसलिए माँ को ममता की मूरत भी कहा जाता है।  पर सही मायने में ना पिता माँ की जगह ले सकता है और ना माँ एक पिता की।

और अगर कही ससुराल वालो ने पिता की दूसरी शादी करवा दी तब ?तब क्या एक सौतेली माँ बच्चे को सगी माँ जितना प्यार दे सकती है ? बस इसी सोच में भगवान के आगे हाथ जोड़े बैठी थी। तभी रानी बिटिया दौड़ते हुए आई और गोदी में झट से बैठ गई।

मैंनेअपनी नन्ही परी को ज़ोर से गले लगाया और तब एक ख्याल मन में आया की होनी को आज तक कोई नहीं टाल पाया है। जो आया है उसे एक दिन जाना ही है। तो क्यों ना कल की चिंता किये बिना आज को जी लें। क्यों ना आज ही सारी खुशियाँ बाँट लें। कल का गम करके आज को क्यों खोना। बिटिया मेरी है, मैं रहूं या ना रहूं मेरे संस्कार, मेरी सीख हमेशा उसके साथ रहेगी।और मैं जहाँ भी रहूं मेरा प्यार हमेशा मेरी बिटिया पर बना रहेगा।

यह घटना वास्तविकता में मेरे साथ घटी है जिसने मुझे अंदर तक झिंझोड़ कर रख दिया था. इस घटना ने मुझे यह सोचने पर मजबूर कर दिया था की अगर मैं नहीं रही तो मेरी बिटिया किसकी जिम्मेदारी होगी? और क्या एक पिता भी एक माँ का दाइत्व (जिम्मेदारी ) बखूबी निभा सकता है? जरा सोचिये!!!

अगर आपको मेरा यह ब्लॉग पसंद आया हो तो मुझे कॉमेंट करके जरूर बताएं। धन्यवाद!

 

Disclaimer: This blog was originally posted on Momspresso.com. This is a personal blog. Any views or opinions represented in this blog are personal and belong solely to the blog owner.

About The Author

Rama Dubey

I am a Communication Professional with more than 13 years of rich experience in Public relations, Media management, Marketing and Brand promotion.  Currently working as a Head- communication for an IT firm.

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