सुहाना मौसम, हल्की हल्की ठण्ड, नवम्बर का महीना यानि परफेक्ट वेडिंग सीजन। इसी सीजन में मेरी शादी भी 29 नवंबर की फिक्स हुई थीं। शादी की सारी तैयारियां पूरी हो चुकी थीं और मैं भी चांदनी चौक के चक्कर लगा लगा कर अब पूरी तरह से टैन हो चुकी थी। शादी का दिन जैसे जैसे पास आता जा रहा था, सभी घरवालों की धड़कने बढ़ने लगी थीं।
मुझे शादी की ख़ुशी तो थी, पर वो धड़कन बढ़ना, सासें रुकना और जमीन खिसकने वाली फीलिंग आ ही नहीं रही थी। शादी से कुछ दिन पहले भाई भी छुट्टी ले कर आ गया था और साथ में वेडिंग सांग्स की सीडी भी लाया था। मुझे बड़ी ख़ुशी हुई, सोचा इन सांग्स पे परफॉरमेंस देंगे। जैसे ही सीडी चलाई गाना बजा “बाबुल का ये घर बेहना, कुछ दिन का ठिकाना है|”
पीछे से भाई बोला “तुझे विदाई वाला फील भी तो आना चाहिए, सुन ले ये गाने, हेल्प करेंगे” और ठहाके मारता हुआ चला गया।
पास ही मम्मी बैठी थीं, मैंने यूँ ही पूछ डाला “मम्मी विदाई के वक्त रोना नहीं आया तो”?
मम्मी हैरान होकर बोली “अरे ऐसे कैसे? सब लड़कियाँ रोती हैं? ससुराल वाले क्या कहेंगे? बहु विदाई के वक्त रोई नहीं??और फिर गांव से बुआ आ रही हैं, मामी आ रही हैं, क्या कहेंगी सब”?
“ओहो! तो कौन सा लंदन पेरिस जा रहीं हूँ? आपने ससुराल भी तो एक गली छोड़ कर ही ढूंढा है, अब इसमें रोना कैसा? शादी के बाद जब चाहो कूद के इधर, कूद के उधर|
खैर शादी का दिन आ ही गया| ब्यूटी पार्लर वाली ने मुझे फुल ऑन मेकअप पोत कर जोधा अकबर की जोधा बना दिया था। वो रजवाड़ा हार, 10 किलो का सर पर नकली जूड़ा, 2 किलो की नाक की नथ, और छप्पन किलो का लहंगा। मैं अपनी बहनों और सहेलियों की साथ बैंक्वेट हॉल के रूम में पंहुचा दी गयी। कुछ ही देर में ढोल और बैंड बाजे की आवाज आने लगी। इतने में पास खड़ी मेरी फ्रेंड शिवांगी ने कोहनी मार कर चुटकी लेते हुई कहा “रमा बारात आ गयी| और कैसा लग रहा है? हम्म?”
सुबह की भूखी मैं, नाक की नथ मुँह पर लटकाये क्या जवाब देती?
“हम्म… ठीक लग रहा है|”
“अबे! बस ठीक लग रहा है? धड़कन नहीं बढ़ रही, घबराहट नहीं हो रही?” शिवांगी ने पुछा।
“बहन, घबराहट का तो पता नहीं, पर भूख बड़ी ज़ोर लगी है” मैंने भी तुरंत जवाब दिया।
थोड़ी देर में स्टेज पर जाने का बुलावा भी आ गया। जयमाल की रसम हुई और आशीर्वाद पोज़ में एक एक कर सबने फोटो भी खिचवाईं। और वो जो मेरे सर पर 10 किलो का निकली जूड़ा पूरब दिशा में सेट किया गया था, वो सबका आशीर्वाद पा कर अब दक्षिण दिशा में शिफ्ट हो चुका था। इतने में बची खुची कसर पूरी करने कलाकार लोग स्टेज पर आ पहुंचे “अरे अपने फोटो और वीडियो वाले भैया!”
“मैडम ज़रा ऐसे, जरा वैसे, ज़रा सर का हाथ पकड़ो, थोड़ा मुस्कुराओ वगैरह वगैरह”|
अब खाने की शौक़ीन को रात भर भूखा रखोगे तो हंसी क्या खाक ही निकलेगी? मुस्कुराते मुस्कुराते भी नज़र एक बार गोलगप्पे के स्टाल पर पड़ ही जाती। खैर वो समय आ ही गया जिसका मुझे बेसब्री से इंतज़ार था “पेट पूजा टाइम”| दिन भर की भूखी के आगे छप्पन भोग रखे गए, तभी मुँह पर फ़्लैशलाइट मारते हुए वीडियो वाले भैया बोले, “मैडम अब खाओ!” और पीछे से दीदी कोहनी मार कर बोली “बस एक ही बाईट खाना।”
आप इमेजिन भी नहीं सकते मुझ अबला पर क्या बीत रही थी। बस सूंघ कर ही रसगुल्ले, टिक्की, हलवा, और मटर पनीर का स्वाद ले कर रह गयी। इतने में चाचा जी बोले “चलो चलो, बहुत हुआ खाना, शादी का मुहूर्त निकला जा रहा है| रमा को तैयार करके मंडप में ले आओ”।तैयार करके? अभी और भी तैयार होना है? ये तैयारी कम पड़ रही है अभी?” मैंने मन में सोचा।
स्टेज से मंडप में पहुंची और इनके साथ जा कर बैठी| फूलों से सजा मंडप, तरह तरह के फल, अगरबत्ती की खुशबु और हवन की अग्नि जैसे सारे माहौल को और भी सुन्दर बना रही थी। जैसे ही सामने बैठे पांच पंडितों ने मंत्रो का उच्चारण शुरू किया मानो मेरे रोंगटे खड़े हो गए और जिस घबराहट को मैं अब तक महसूस नहीं कर पा रही थी, उन लम्हों को अब महसूस करने लगी थी। पंडित जी ने एक एक कर रस्में शुरू कीं और अब हर रस्म के साथ ही मुझे इस अटूट बंधन की पवित्रता समझ आने लगी।
और फिर शुरू हुई कन्यादान की रस्म|
पंडित जी ने बताया कि संसार में कई तरह के दान होते हैं, अन्नदान, गौ दान, यहाँ तक कि अंग दान भी, पर कन्यादान को ही सर्वोच्य दान माना गया है। पापा ने मेरा हाथ इनके हाथ पर रखा और भैया ने ऊपर से पानी की धार गिराई। जैसे जैसे पानी की धार मेरे हाथों पर पड़ती मुझे अपने बचपन की वो हर एक बात याद आती। और अब यह एहसास हो रहा था कि पुराने रिश्ते पीछे छूट रहे थे और नए रिश्तो जुड़ रहे थे। इन सबमें एक रस्म में वर का बड़ा भाई, दुल्हन को ससुराल से आये गहने, कपडे देता है और सर पर लाल चुनरी उढ़ा कर आशीर्वाद देता है। पंडित जी ने बताया कि वर के बड़े भाई ने इस लाल चुनरी के साथ अब अपको ससुराल का मान, सम्मान और जिम्मेदारियां भी सौपी हैं|
अब जैसे जैसे रस्में निभाती जा रही थी, ऐसा लग रहा था मानो मैं अब अपने पापा की छोटी नटखट बेटी से अपने ससुराल की बहु बनती जा रही थी| पंडित जी ने गठबंधन के बाद सात फेरों का मतलब भी बताया कि कैसे पति पत्नी हर सुख दुःख में एक दूसरे का साथ निभाने की कसम लेते हैं।
आखिरी रस्म थी सिंदूरदान की|
बिहार में यह रस्म पीले सिंदूर से की जाती है। पीला सिन्दूर दुल्हन की खुबसुरती में चार चाँद लगा देता है और शायद इसलिए नए जोड़े को बुरी नज़र से बचाने के लिए यह रस्म कपड़े की आड़ में छुपा कर की जाती है। जैसे ही इन्होने सोने की अंगूठी से मेरी मांग में सिन्दूर भरा, उस पल मैं अपने आंसू ना रोक पाई। अब समझने लगी थी कि शादी की इन्ही पवित्र रस्मों को निभाने के लिए, वर वधु व्रत रख कर पहले मन की शुद्धि करते हैं और फिर सात जन्मों के इस पवित्र रिश्ते में बांध जाते हैं।
शादी की रस्में निभा कर हम घर पहुंचे और सबने विदाई की तैयारियां शुरू कर दी। घर में हलचल तेज़ हो गयी थी, अब चूँकि मेरा ससुराल एक गली छोड़ कर ही था, तो मैंने दीदी से धीरे से पूछ डाला “पैदल जाना है या गाड़ी वाड़ी आयी है”? मेरी बात सुन दीदी समझ गयी कि ये विदाई में रोने वाली नहीं है, तो उसने लम्बे घुघट से मेरा मुँह ढक दिया।
अब घूंघट में कुछ समझ ही ना आये, कौन कौन गले लग कर रो रहा था। वैसे सच बताऊँ? तो थोड़ा रोना तो मुझे भी आ रहा था, पर वो इसलिए कि मुझे डर था कि ससुराल वाले मेरे नखरे उठा पाएंगे कि नहीं! इन सबमे मेरी नज़र पापा को ढूंढ रही थी।
तभी याद आया, एक बार मम्मी ने बताया था कि पापा किसी भी विदाई में नहीं रहते थे, थोड़े ज़्यादा ही इमोशनल थे मेरे पापा। खैर सबने मुझे विदा कर गाड़ी में बिठा दिया। अपने दो चार आंसुओं को ले कर मैं गाड़ी में बैठ गई।गाड़ी अभी थोड़ा आगे ही पहुंची थी कि किसी ने गाड़ी की खिड़की खटखटायी, वो मेरे पापा थे। उनका मन नहीं माना तो आँखों में आंसू लिए आधे रस्ते में गाड़ी रुकवा कर वो अपनी छोटी और लाडली बेटी को विदा करने आये थे। और जिस बात से सब लोग डर रहे थे कि ये लड़की विदाई में नहीं रोने वाली, उस दिन मैं अपने पापा से गले लग कर खूब रोई।
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I am a Communication Professional with more than 13 years of rich experience in Public relations, Media management, Marketing and Brand promotion. Currently working as a Head- communication for an IT firm.
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Rama Dubey
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