ससुराल गेंदा फूल

जैसे ही बिटिया 25 बरस की हो, उसकी शादी के लिए लड़के देखने शुरू कर देने चाहिए, पता नहीं सही लड़का मिलने कितना वक्त लग जाए। कुछ ऐसा ही मानना था मेरी माँ का। और जिनकी टेंशन मेरे 25 साल पूरा होते ही बढ़ने लगी थी।

मैं अच्छा भला अपनी जॉब में बिजी और खुश थी की माता जी (यानि मेरी मॉम) का आर्डर आया की कल जा कर एक मैट्रिमोनियल फोटो खीचवा लो।

अब माता जी का हुकुम टालना मतलब पानी में रह कर मगर से बैर करना। सो खिचवा ली बिना मन के शादी की फोटो।

आप यकीन नहीं करेंगे फोटो भी ऐसी आयी की लड़के वाले देखते ही पहली नज़र में माना कर दें ।

खैर मेरे लिए तो अच्छा ही था, उन दिनों वैसे भी  मुझे न शादी की कोई जल्दी थी और ना ही कोई ख़ास दिलचस्बी।

 

पता चला की सामने की सोसाइटी से ही रिश्ता आया है कोई दुबे जी है उनका बेटा।

मुझे तो यकीन था की फोटो देख कर तो कोई भी माना कर देगा इसलिए मै निश्चिन्त थी।

पर दुबे जी (यानि की हमारे ससुर जी )समझदार निकले। पिता जी ने बताया की दुबे जी सपरिवार चाय पर आना चाहते है।

मेरे मन से आवाज आयी, हम्म.. समझदार लोग है… लड़की को दूसरा मौका देना चाहते है! हम्म.. ठीक है आने दो !! देखते है !!

मुझे आज भी याद है वो दिन जब ससुराल से मेरी सासु माँ, ससुर जी और देवर चाय के बहाने मुझे देखने आए थे।

 

मम्मी का फरमान था “चाय को ट्रे में सजा के लाना “!!

भई… अब तक जो फिल्मों में देखा था अब वो हकीकत में करने पर आया तो मेरी बतीसी ही बंद ना हो।

पता नहीं कौन सी बात पर मेरी हसी छुटी जाए। शायद अपने को एक सभ्य लड़की के फ्रेम में चाय और ट्रे के साथ कभी इमेजिन नहीं किया  था।

बड़े बड़े इंटरव्यू दिए थे पर  बहु की पोस्ट के लिए आज ये मेरा पहला इंटरव्यू था। बड़ी मुश्किल से अपनी हसी रोकी और बिना किसी से नज़रे मिलाये चाय ले कर पहुंची।

फिर क्या सवाल जवाब शुरू हुए। और शायद मैं सेलेक्ट.. मेरा मतलब है पसंद भी आ गयी थी ।

उस दिन मेरा, मेरी सासु माँ के साथ पहली मुलाकात थी। बहुत ही शांत और शीतल स्वाभाव की हस मुख महिला है मेरी सासु माँ।

उस दिन पैर छूने पर मुझे दस मिनट का आशीर्वाद और चेहरे पर 5  जगह (माथा, दोनों गाल, चीन,और नाक ) पर किस्सियाँ भी मिली।

और ठीक इसी अंदाज में आशीर्वाद देने की परंपरा मेरी सासु माँ आज भी निभाती हैं।

 

खैर सबका मिलना हुआ और उस दिन से मेरी माता जी के अंडर शुरू हुई मेरी “ससुराल टैनिंग “।

बात बात पर मेरी माँ जैसे सभी मायें करती है ठीक वैसे ही मुझे भी ताने मारा करती थी।

“सुबह जल्दी उठा करो वरना सास टांगे तोड़ देगी”,

“सास ये सब नहीं सहेगी”,

“ऐसा खाना बनाओगी तो सास घर से बाहर निकाल देगी” वगैरह वगैरह….

कम शब्दों में कहूं तो सास को हिटलर का मुखौटा पहना दिया गया था।

बेहराल मायके से ट्रेनिंग लेकर हसी ख़ुशी से मैं ससुराल आई।

पहली रसोई बनाने का मौका था।

मायके में पहली रसोई में खीर या हलवा या कुछ भी मीठा बनता था, पर यहाँ सब उल्टा निकला :

“बेटा आज तुम्हारी पहली रसोई है.. खिचड़ी बनाना”

 

खिचड़ी ???

खिचड़ी सुनते ही टॉइलेट के फ्लश की आवाजे कानो में गुजने सी लगी।

मैंने संकोच करते हुए पुछा “मम्मी जी किसी का पेट ख़राब है क्या ” ???

 

जवाब मिला “नहीं बेटा हमारे यहाँ खिचड़ी बना कर पहली रसोई छूते है।”

 

है भगवन ! इसे कहते है छोले भठूरे की कढ़ाई से निकले.. और खिचड़ी के पतीले में आ गिरे!! 🙂

 

चुकीं मैं बचपन से ही चटोरी रहीं हूं और मायके में  खिचड़ी सिर्फ पेट में गैस होने पर ही बनती थी तो ज़्यादा आईडिया नहीं था खिचड़ी बनाने का।

किसी तरह जुगाड़ कर के स्वादिष्ट खिचड़ी बनाने की कोशिश की, पास खड़ी सासु माँ मेरा खिचड़ी बनाने का जुगाड़ देख कर बोली :

“हुर ना सहूर.. ससुरा जाएब हम जरूर”…!!!

ये सुनते ही सच मानो जैसे वो मायके का हिटलर वाला मुखौटा आँखों के सामने आ गया हो।

लगा, रमा दुबे ज़रा संभल कर सासु माँ सख्त मिज़ाज लगती है।

पर जैसे जैसे दिन बिताते गए, ससुराल में मन लगता गया, और सासु माँ… भई.. वो तो अब दोस्त सी बन गयीं थी।

आज भी याद है शाम होते ही सासु माँ का अपनी चटोरी बहु के लिए कुछ ना कुछ चटपटा स्नैक्स लाना।

 

एक बार तो हद ही हो गयी, सासु माँ बर्गर लायी और बोली रमा तुझे बर्गर पसंद है ना आज लेने गयी तो ढेले वाले ने पी रखी थी, किसी तरह बनवा के भाग के आई हूँ।

“अरे मम्मी रहने देती, अगर वो शराबी आपको छेड़ देता तो…!! बस इतना कहते ही हम दोनों हस हस कर लोटपोट हो गए।

 

शादी के तीन महीने बाद ही मेरी नयी नौकरी लग गई थी, मेरी तन्खवा मेरे पति से थोड़ी ज़्यादा थी और ये बात मेरी सासु माँ बड़े ही गर्व से सबको बताती थी।

“हमारी बहु, हमारे बेटे से भी ज़यादा कमाती है ”

शाम को थक के ऑफिस से आना और आपका मिठाई के साथ मुझे पानी देना , थोड़ी शर्म आती थी तो बोल भी देती थी,

“मम्मी आप पानी मत दिया करो.. अच्छा नहीं लगता”

“अरे थक के आयी है, थोड़ा पानी पी के आराम कर ले फिर खाना बनाना ”

रात को बिठा कर संस्कार चैनल के कौन कौन से बाबाओं के सत्संग की कहानियां सुनाना।

 

संडे को मेरा सबके लिए पकोड़े बनाना और उस पर आपका बोलना “बेटा तुम बनाते बनाते ही खा लो ”

 

“मम्मी रसोई में ही “???

 

हमारे मायके में तो रसोई में खड़े हो कर पानी भी पी लो तो समझो “सजा ए मौत” मिलेगी।

पर यहाँ सासु माँ बोली “हाँ बेटा..खा लो वरना ख़तम हो जाएंगे और तुम रह जाओगी”

 

शादी के सात साल तक भी मुझे माँ बनाने का सुख नहीं मिला । मैंने तो हिम्मत और आस दोनों ही छोड़ दी थी पर आपने मेरी हिम्मत नहीं टूटने दी।

जहाँ बच्चा ना होने पर ससुराल वाले अपने बेटे की दूसरी शादी तक करवाने का सोच लेते है वही आप मुझे हमेशा हौसला देती रही ।

“बेटा घबरा मत, भगवन जल्दी तेरी गोद भरेंगे”

शायद आपकी पूजा और दुआओं का ही नतीजा है की मुझे माँ बनने का मौका मिला।

आज आपको अपनी पोती को हमसे भी ज़्यादा प्यार करते देखती हूँ तो आंखे नम हो जाती हैं।

 

वो कहते है ना की पति से गुण मिले ना मिले.. सास से कुंडली ज़रूर मिलनी चाहिए।

शादी से पहले कभी अच्छे पति और सास के लिए पूजा या व्रत नहीं किया पर हाँ अब इस जनम में जरूर करुँगी की आने वाले हर जनम में आप ही मेरी सासु माँ बनो।

 

सोने पर सुहागा तो ये है की मेरे पति की सूरत और सीरत दोनों ही सासु माँ जैसी ही हैं।तो मेरे तो दोनों हाथों में लड्डू हुए ना !!  🙂

 

थैंक्यू सासु माँ !! मेरी जिंदगी में ख़ुशी के रंग भरने के लिए।

 

अगर आपको मेरा यह ब्लॉग पसंद आये तो मुझे कमेंट करके ज़रूर बताएं ।

 

Disclaimer: This blog was originally posted on Momspresso.com. This is a personal blog. Any views or opinions represented in this blog are personal and belong solely to the blog owner.

 

 

About The Author

Rama Dubey

I am a Communication Professional with more than 13 years of rich experience in Public relations, Media management, Marketing and Brand promotion.  Currently working as a Head- communication for an IT firm.

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