आज ममता को आने में थोड़ी देर हो गई। मैंने फोन लगाया तो बोली “भाभी बस दस मिनट में आई”।
ममता मेरी कुक है। मेरे यहाँ वो पिछले 6 साल से है, उन दिनों मैं ऑफिस जाया करती थी, तो सुबह का नाश्ता और लंच बनाने का समय नहीं मिल पता था , इसलिए कुक रख ली।
अब इतने साल बाद वो परिवार में इतना घुल मिल गई है की कभी उसे निकालने का सोचा नहीं ।
खैर, देर से ही सही, ममता आयी और आज उसकी आँखों में एक अलग ही चमक थी।
“क्या बात है आज बड़ा खुश लग रही है ”
“हाँ भाभी… आज पी टी एम था, दिव्या का रिजल्ट आया है, बड़े अच्छे नंबर से पास हुई है, मैडम भी तारीफ कर रही थी”
“अरे वाह !! बहुत अच्छा … ”
दिव्या ममता की 7 बरस की बेटी है ।
जाते वक्त ममता ने बताया की दिव्या को अब बड़े स्कूल में डालना है, ये स्कूल यही तक था।
“भाभी वो सरकार ने गरीब बच्चो के लिए कोई योजना बनाई है क्या? ”
अरे हाँ !! बनाई तो हैं, चुकि स्कूल अथॉरिटी को स्कूल बनाने की लिए सरकार द्वारा जमीन सस्ते दामों पर दी जाती है इसलिए हर स्कूल को कुछ सीटें गरीब बच्चो के लिए आरक्षित रखनी होती है ।
इसे (आर टी आई) कहते है।
ममता को ये सुन कर बड़ी ख़ुशी हुई, वो भले ही खुद पढ़ी लिखी नहीं थी पर अपनी बेटी को पढ़ाने में उसने कोई कसर नहीं छोड़ी थी।
बड़ी मुश्किलों की बाद उसे (आर टी आई) का फॉर्म मिला, पर उसमे जमा करने की लिए जो जरुरी डॉक्यूमेंट चाहिए थे वो पूरे नहीं पड़ रहे थे। कभी राशन कार्ड, कभी आधार कार्ड, कभी रेंट अग्रिमेन्ट,पर बड़ी मुश्किलों के बाद उसने फॉर्म भरा और जमा किया ।
सरकार ने भले ही स्कूलों में गरीब कोटा रखा है पर ज़्यादा तर लोगों को या तो इसकी पूरी जानकारी ही नहीं होती या किसी के पास इतना समय और डोक्युमेंट नहीं होते की कोई अर्जी भी डाल सके।
यह तो ममता की लगन और जज्बा ही था की आज दिव्या का एडमिशन उसकी झुग्गी के पास के ही एक बड़े इंग्लिश मीडियम स्कूल में हो गया था।
उस दिन ममता बहुत परेशान थी, उसने बताया की आज ही उसे पता चला है की सरकार सिर्फ स्कूल की फीस भरेगी, बाकी खर्चा जैसे स्कूल ड्रेस, कॉपी किताबों का खर्चा, एक्स्ट्रा करीकुलर का खर्चा उसे खुद ही देना होगा।
वो परेशान थी क्योकि एक गरीब आदमी की लिए स्कूल के इन खर्चों को उठाना भी मुश्किल था।
पर मुसीबतें तो अभी शुरू हुई थी।
दिव्या को उसके दोस्त अपनी बर्थडे पार्टी में नहीं बुलाते थे।
ममता ने बताया की उसकी झुग्गी स्कूल के पास ही है तो शायद सबको पता है की दिव्या गरीब कोटा से है। इसलिए बच्चो की मायें नहीं चाहती की उनका बच्चा गरीब बच्चे से दोस्ती करे।
अब आप ये सोचिये की एक नन्हे मासूम बच्चे को जिसे दुनियादारी की इतनी समझ ही नहीं, और जो अमीरी गरीबी के बीच का अंतर नहीं जनता, उस मासूम पर इन सब बातों का क्या असर पड़ता होगा।
सरकार सिर्फ गरीब बच्चो को बड़े स्कूलों में पढ़ने की रियायते दे सकती है पर समाज की मानसिकता नहीं बदल सकती। जरूरत है की अब हम भी अपनी सोच बदले और बच्चो में आमिर गरीब का भेदभाव ना करे और ना ही सिखाएं।
चूँकि ममता पढ़ी लिखी नहीं थी तो अक्सर स्कूल से आये वाट्सएप्प नोटिफिकेशन पढ़ नहीं पाती थी और जिसका ख़मयाज़ा भी दिव्या को ही चुकाना पड़ता था।
स्कूल से मिला होमवर्क और पढाई में मदद की लिए ममता को दिव्या की टूशन लगवानी पड़ी जिसका खर्चा उसकी आमदनी में फिट नहीं बैठता था ।
आज स्कूल से सभी बच्चे पिकनिक जा रहे थे पर दिव्या नहीं जा रही , जब मैंने कारण पूछा तो ममता बोली,
“पिकनिक जाने की लिए 500 रुपए देने थे भाभी, इतने मे तो मेरा एक हफ्ते का राशन आ जायेगा”।
स्कूल के एनुअल डे में भी दिव्या ने हिस्सा नहीं लिया बोली, ” रेफेरश्मेंट और ड्रेस की लिए मैडम ने 200 रुपय मांगे है”। “कहाँ से लाऊ?”
आज सरकार ने हाई फाई स्कूलों में गरीब कोटा तो ज़रूर बना दिया है पर गरीब इन बड़े स्कूलों के बच्चों से बराबरी की होड़ मे मारा जाता है, और जिससे कई बार गरीब के बच्चे में हीन भावना भी पैदा होती है।
जरुरत है की सरकारी स्कूलों में भी प्राइवेट स्कूल जैसी ही सब सुविधायें लायीं जाये एवं सरकारी स्कूलों की पढाई का स्तर भी सुधारा जाए ताकि किसी बच्चे को गरीब कोटा में दाखिला ही ना लेना पड़े।
और सिर्फ गरीब ही क्यों , शिक्षा जो की हर इंसान का मौलिक अधिकार है उसे पाने के लिए हर वर्ग, चाहे वो गरीब हो या मध्यम वर्ग सबको ही जद्दोज़हद करनी पड़ती है।
आज हम मध्यम वर्गीय लोग भी स्कूल माफिया की गिरफ्त में कुछ इस कदर फस चुके है की हम चाह कर भी कुछ नहीं कर पाते। फिर चाहे वो एडमिशन फीस के नाम पर लाखों रुपये की वसूली हो, एनुअल फीस के नाम पर हर साल जमा होने वाला पैसा हो या स्कूल से ही बुक्स कॉपी और ड्रेस खरीदने का फरमान।
माता पिता अपने बच्चो का अच्छा भविष्य बनाने की आस में महंगे स्कूलों में दाखिला करवा कर स्कूलों की मनमानी के बोझ तले दबते चले जाते है। और माता पिता का यही बोझ, शायद बच्चो में अच्छे नंबर लाने की उम्मीदे भी जगाता है। पर जरूरी नहीं की हर बच्चा अपने माता पिता के इन उम्मीदों पर खरा ही उतरे। इसलिए शायद आज हमारे देश में स्टूडेंट्स सुसाइड के केस इतने बढ़ गए है।हर बच्चा एक दूसरे से अलग है इसलिए मेरा मानना है कि उसपर किसी भी तरह का दबाव सही नहीं।
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I am a Communication Professional with more than 13 years of rich experience in Public relations, Media management, Marketing and Brand promotion. Currently working as a Head- communication for an IT firm.
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Rama Dubey
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