मेरी बेटी, मेरा गुरुर !

साल 1996 की बात है, ब्रज किशोर शर्मा जी के यहाँ तीन बेटों के बाद, आज बेटी पैदा हुई थी। पूरा घर यहाँ तक की उनका मोहल्ला भी आज ख़ुशी से झूम रहा था। ब्रज किशोर शर्मा जी, शहर के जाने माने जौहरी थे और शहर के मेन मार्किट में ही उनकी दुकान थी।

वैसे तो लोग बेटा होने की मन्नतें मांगते हैं पर शर्मा जी को बेटियों से इतना प्यार था कि उन्होंने इस बार बेटी होने के लिए भगवान से मन्नत मांगी थी। आज जब शर्मा जी ने अपनी बेटी को पहली बार गोदी में लिया तो उनकी आखें भर आईं।

बिटिया का नाम मधुरिमा रखा, पर शर्मा जी उसे प्यार से मधु बिटिया बुलाते थे। तीन भाइयों की एकलौती बहन होने के नाते मधु सबकी लाड़ली भी थी। ऐसी कोई मांग न थी जो मधु करे और वो पूरी ना हो।

मधु बचपन से ही सुन्दर, हंसमुख और चंचल स्वाभाव की थी। तभी एक दिन शर्मा जी के हँसते खेलते परिवार को किसी की नज़र लग गयी। मधु जब महज़ 5 बरस की थी तब उसकी माँ का देहांत हो गया। शर्मा जी अपनी पत्नी के देहांत से टूट से गए थे। पर घर और बच्चों की जिम्मेदारियों ने उन्हें बिखरने नहीं दिया।

जैसे जैसे दिन बीतता गया, शर्मा जी स्वभाव से सख्त होते चले गए। और काम की व्यस्तता उन्हें उनके बच्चों से दूर ले जाती गयी। अब शर्मा जी सुबह के गए सीधा रात को ही शॉप से लौट कर आते थे। इधर मधु को अपनी माँ की कमी हमेशा से खलती थी, पर कहे भी तो किससे।

धीरे धीरे मधु बड़ी होने लगी| आज वो 24 बरस की हो गयी थी। मधु ने भी घर की जिम्मेदारियाँ बखूबी संभल ली थीं, पर आज भी वो खुद को अकेला और तनहा महसूस करती थी।

आज मधु के पिता जी ने, अजय को कुछ सामान ले कर घर भेजा था। अजय, मधु के पिता जी की शॉप में अकाउंटेंट था। अजय ने घर की बेल्ल बजायी, तो मधु ने दरवाजा खोला।

“वो अंकल ने कुछ सामान भेजा है संभाल के रखने के लिए”

मधु ने हाथ बढ़ा कर सामान ले लिया।

अजय, मधु को पसंद करता था पर ये बात वो कभी मधु को बता नहीं पाया।

“आप बैठिये, मैं पानी लती हूँ”

“आप पास के कॉलेज में पढ़ती हैं ना, मैंने देखा है आपको…” अजय धीरे से बोला।

मधु मुस्कुराते हुए बोली “जी हाँ ”

जैसे जैसे दिन बिताते गए अजय और मधु दोस्त बन गए और कुछ महीनो बाद ये दोस्ती प्यार में बदल गई।

दोनों एक दूसरे को काफी पसंद करने लगे थे पर अपने पिता जी के सख्त स्वभाव की वजह से मधु ये बात अपने घर वालो को कभी बता नहीं पायी। चूँकि अजय उनके ऑफिस में अकाउंटेंट था इसलिए मधु जानती थी की उसके घर वाले इस रिश्ते की लिए कभी तैयार नहीं होंगे।

एक शाम मधु के पिता जी ने बताया,

“बेटा तुम्हारे लिए एक अच्छा रिश्ता आया है”

“सोचता हूँ इस साल सगाई और अगले साल तुम्हारी शादी कर के निश्चिन्त हो जाऊ।”

ये सुनते ही जैसे मधु के पैरों के नीचे से जैसे जमीन खिसक गई हो।

पिता जी के सख्त व्यवहार के कारण मधु उन्हें कुछ बता पाने की हिम्मत नहीं जुटा पायी।

उस दिन मधु ने अजय से मिल कर उसे सब बताया, मधु की आँखों से आसु रुक नहीं रहे थे। जिस पर अजय बोला, “मधु चलो हम भाग चलते है”।

इन सबसे दूर कहीं चले जायेंगे और शादी करके वहीँ रहेंगे। तुम भी जानती हो हमारे घर वाले कभी भी इस रिश्ते के लिए हाँ नहीं करेंगे।

मधु पहले हिचकिचाई पर फिर अजय के समझाने पर घर से भागने को तैयार हो गई।

दिन भर सब शांत था, मधु ने अपने साथ ले जाने के लिए कुछ कपडे और पैसे रख लिए थे।

उसी दिन शर्मा जी की तबियत थोड़ी बिगड़ गई और वो शाम को जल्दी ही घर लौट आये।

अपने पिता जी को जल्दी घर आया देख कर मधु थोड़ी हैरान हो गई ।

“क्या हुआ पापा ” “आज आप जल्दी घर वापस आ गए ?”

“हाँ बेटा, थोड़ी तबियत ख़राब सी लग रही थी ” “सर में दर्द है थोड़ा” ।

“पापा मैं आपके सिर में थोड़ा तेल दबा देती हूँ, आराम मिलेगा”।

मधु ने अपने पिता को पानी और दवा दी और थोड़ा तेल भी ले आयी।

मधु की तेल मालिश से उसके पिता का सिर दर्द अब थोड़ा आराम था, उन्होंने मधु का हाथ पकड़ उसे अपने पास ही बिठा लिया।

“बेटा तुम बिलकुल अपनी मां जैसी ही हो, तुम्हारी माँ भी मेरा ऐसी ही ध्यान रखती थी”

“पता है जब तुम्हे मैंने अपनी गोद में पहली बार लिया था तब ख़ुशी से मेरा सीना चौड़ा हो गया था।”

“पर बेटा मुझे माफ़ कर देना, मैं अब जिम्मेदारियों के बोझ में इतना दब गया हूँ की तुम लोगो को समय ही नहीं दे पता।”

“तुम्हारी मां से किया वादा मैं पूरा नहीं कर पाया,  मैं तुम लोगो का अच्छा पिता नहीं बन पाया”

इतना कहते ही उनकी आंखें भर आयी और वे वहां से उठ कर चले गए।

ये सब सुन कर मधु वहाँ बैठी सी रह गई। उसके मन में हलचल तेज़ हो गई थी।

“ये मैं क्या करने जा रहीं थी”,

“घर से भाग कर मैं अपने परिवार का सर शर्म से झुकाने वाली थी”

“जिस बिटिया के होने पर पिता जी का सीना फक्र से चौड़ा हो गया था कल उसके घर से भाग जाने पर वो लोगो को क्या मुँह दिखाते।”

माँ के देहांत के बाद पिता जी चाहते तो दूसरी शादी भी कर सकते थे पर उन्होंने हमारी खुशियों के लिए दुबारा शादी का सोचा तक नहीं। और आज जब मेरा घर परिवार की जिम्मेदारी निभाने का समय आया तो मैं खुदगर्ज बन कर सबका सर शर्म से झुकाने चली थी।

ये सोचते सोचते मधु अपने कमरे में लौट आयी, वो आज खुद ही से नज़रे नहीं मिला पा रही थी।

तभी उसकी नज़र फोन पर पड़ी , उसमे अजय की 8 मिस्ड कॉल्स थी।

मधु ने अजय को फोन लगाया,

“अजय मुझे माफ़ कर देना, मुझसे ये नहीं होगा, मैं गलत थी।”

हाँ, मैं तुमसे प्यार करती हूँ पर मैं अपने पिता जी से भी उतना ही प्यार करती हूँ, और मैं उनका सर शर्म से झुकता नहीं देख सकती।

अगर आज मैं, पिता जी से अपने 24 बरस के रिश्ते को धोखा दूंगी, तो तुम्हारे साथ अपने नए रिश्ते से वफादारी कैसे कर पाऊँगी।

मुझे माफ़ कर देना अजय। इतना कह कर मधु ने फोन काट दिया।

मधु को दरवाजे की पीछे से कुछ आवाज आयी ,पलट कर देखा तो उसके पिताजी सामने खड़े उसकी सब बातें सुन रहे थे।

अपने सामने पिता जी को देख मधु डर गई और नज़रें चुराने लगी।

मधु के पिता कमरे में आये और गुस्से से मधु को देखा और पूछा,

“मधु, क्या सुन रहा हूँ मैं”?

मधु ने हिम्मत कर अपने पिता जी से सारी बात कह सुनाई।

पापा, मैं अजय से प्यार ज़रूर करती हूँ पर आपकी रज़ामंदी के बिना मैं ये रिश्ता आगे नहीं बढ़ाउंगी।

शर्मा जी थोड़ी देर के लिए सोच में पड़ गए और आगे बढ़ कर मधु के सर पर हाथ रख कर बोले ,

बेटा, आज अगर तुम घर छोड़ के भाग जाती तो मेरे दिल को ज़्यादा ठेस पहुँचती और फिर शायद मैं ज़िन्दगी भर तुम्हारा मुँह तक ना देखता।

पर तुम मेरी इज़्ज़त और मान सम्मान के आगे अपनी ख़ुशी कुर्बान कर दोगी ये नहीं सोचा था मैंने।

बेटा तुम परेशान मत हो तुम्हारी शादी वही होगी जहां तुम चाहोगी।  शर्मा जी ने अपनी बिटिया को गले लगा लिया, बेटा आज मुझे अपनी परवरिश पर नाज़ है।

उस दिन से शर्मा जी रोज़ शॉप से जल्दी घर आते थे और बच्चों को अपना पूरा समय देते थे। रात को डाइनिंग टेबल पर सब मिल कर पुरानी यादें भी ताज़ा करते थे। यूँ कह लीजिये की शर्मा जी अब बच्चों के दोस्त बन चुके थे।

आज फूलो से सजे मंडप में अपनी बिटिया का हाथ अजय के हाथो में देते हुए वो सोच रहे थे की उस दिन अगर मधु ने वो कदम उठाया होता तो आज बिटिया को डोली में हसी ख़ुशी विदा करने का सौभाग्य उन्हें नहीं मिल पता।

दोस्तों, क्या आपने कभी सोचा है की आखिर माता पिता और बच्चों में इतनी दूरियां क्यों हो जाती है ।

हर माता पिता अपने बच्चों से प्यार तो बहुत करते है पर कहीं ना कहीं प्यार जता नहीं पाते। बच्चों में एक विश्वास नहीं जगा पाते, उनके दोस्त नहीं बन पाते। माता पिता से बच्चों का यही डर कई बार उनसे गलत काम तक करवा बैठता है।

आज जरूरत है कि हम बच्चों से खुल कर बात करें, उन्हें समय दें और माता पिता से पहले उनका एक अच्छा दोस्त बनें। एक बच्चे को माता पिता की पेरेंटिंग की ज़्यादा ज़रूरत बचपन में होती है, पर जब आपका बच्चा एडल्ट हो जाये तो उस पर भरोसा करें और उसे खुद के फैसले लेने की आज़ादी दें। बेशक समय समय पर एक दोस्त की तरह उसे सलाह भी दें।

अगर आपको मेरा यह ब्लॉग पसंद आया हो तो मुझे कमेंट करके जरूर बताएं ।

धन्यवाद!

 

Disclaimer: This blog was originally posted on Momspresso.com. This is a personal blog. Any views or opinions represented in this blog are personal and belong solely to the blog owner.

About The Author

Rama Dubey

I am a Communication Professional with more than 13 years of rich experience in Public relations, Media management, Marketing and Brand promotion.  Currently working as a Head- communication for an IT firm.

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