बात सन 1995 की है , जब शाहरुख़ काजोल की (दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे) का सुरूर लोगों के सर चढ़ कर बोल रहा था। तिवारी जी का घर भी इससे अछूता नहीं था।
9 से 5 की नौकरी करने वाले तिवारी जी बड़े ही सरल स्वाभाव के एक आम आदमी थे, जिनके तीन बच्चे हैं। मैं, मेरी बड़ी बहन और एक बड़ा भाई। मैं सबसे छोटी और मेरी बहन सबसे बड़ी है| उन दिनों जहाँ एक तरफ DDLJ रिलीज़ हुई थी, वहीँ दूसरी तरफ तिवारी जी की बड़ी बिटिया और हमारी कहानी की हीरोइन (सिमरन) ने अपने सोलह साल पूरे किये थे। सोलह बरस में आपने और मैंने जैसा फील किया था ठीक वैसा ही हमारी कहानी की सिमरन भी फील करती थी। टीवी, रेडियो पर DDLJ के गाने आते ही दीदी के चेहरे पर एक अलग चमक आ जाती थी और वो खिलखिला उठती थी।
उन दिनों मैं थोड़ी छोटी थी तो मेरे लिए ये सब समझना थोड़ा मुश्किल था। DDLJ के रिलीज़ होते ही ये मूवी हाउस फुल जाने लगी। यंगस्टर्स में तो इस मूवी का अलग ही क्रेज था। यहाँ दीदी की सहेलियों ने भी मिल कर मूवी देखने का प्लान बनाया। सभी बड़े खुश थे पर दीदी के चेहरे पर थोड़ी उदासी थी। उसे डर था कि पापा को ये सब नहीं भायेगा और इसलिए शायद उसे मूवी जाने की परमिशन न मिले।
फिर क्या था दीदी ने घर आ कर थोड़ी हिम्मत जुटाई और पूछ डाला :
“मम्मी वो मेरी सारी फ्रेंड्स कल मूवी देखने जा रहीं हैं, मैं भी जाऊ साथ में ? ”
मूवी ???
कौन सी मूवी ??
कहाँ जाना है? क्यों जाना है ?
कौन कौन जा रहा है ??
हज़ार सवालों के बाद आखिरकार दीदी को परमिशन मिल ही गयी। वो तो ख़ुशी से उछाल पड़ी।
अगली सुबह दीदी मूवी जाने की लिए तैयार हो रही थी, की तभी पापा बोले :
“कहाँ जाने की तयारी हो रही हैं ”
“पापा वो बताया था ना, हम सब फ्रेंड आज मूवी जाएंगे ”
पता नहीं पापा को क्या सुझा, उन्होंने डाट लगा कर मना कर दिया ।
“कहीं जाने की ज़रूरत नहीं है, ये सब पिचर देख के ही सब बिगड़ रहे है, पढाई पर ध्यान लगाओ”
मुझे दिल टूटने की आवाज तो नहीं आयी, पर उस दिन दीदी का दिल टुटा जरूर था। बेचारी बड़ा रोई थी।
अब चूँकि पापा ने मना किआ था तो मम्मी भी कुछ नहीं बोल पाई।
शाम को पार्क में सारी सहेलियां मिलीं, तो सबने अपनी मस्ती के किस्से सुनाने शुरू किये। बेचारी दीदी को जबरन चेहरे पर एक झूठी स्माइल रखनी पड़ी।
खैर मूवी काफी दिन तक हॉल पर लगी थी तो एक महीने बाद पड़ोस के त्रिवेदी अंकल अपने दो बच्चो (चार साल का बेटा और दस साल की बेटी ) और बीवी के साथ DDLJ देखने जा रहे थे।
अब माँ तो माँ ही होती है, उन्हें जैसे ही ये पता चला, चट से उन्होंने दीदी को भी साथ भेजने का इंतजाम कर लिया।
दीदी उस दिन सातवे आसमान पर थी।
शाम को मूवी देख कर वापस लौटी, तो मेरी बहन अब DDLJ की सिमरन पूरी तरह बन चुकी थी। अब बस राज की कमी थी तो वो त्रिवेदी जी के चार साल के बेटे ने पूरी कर दी।
अब तो त्रिवेदी जी का बेटा जब दी को स्कूल से आता देखता तो बोलना शुरू कर देता:
“सिमरन आ गयी… सिमरन आ गयी ”
त्रिवेदी आंटी उसको डाटती, बेटा ऐसे मत बोलो, दीदी बोलो।
और यहां दी ख़ुशी से शरमाते हुए कहती :
“अरे आंटी, कोई बात नहीं, बोलने दीजिये सिमरन “!!
मम्मी से कह कर सिमरन स्टाइल मिड्डी ड्रेस और सफ़ेद सूट सलवार सतरंगे दुपट्टे की साथ ले आयी। और मुझे एक रुपए दे कर कम से कम पचासो बार DDLJ की कहानी सुनाती।
मुझे भी एक रुपए दे कर DDLJ की कहानी सुना लो या अलिफ़ लैला की, मुझे घंटा फर्क पड़ता, मुझे तो बस अपनी एक रुपए की सटमोला की गोली से मतलब था।
एक दिन तो हद ही हो गयी, मम्मी ने भैया को पास के मार्किट से कुछ लाने को बोला, जैसे ही भइया ने साईकिल निकाली, पीछे से दीदी लपक पड़ी।
“मैं भी साथ चलूंगी “,
“तू साईकिल थोड़ा आगे तक चला के ले जा मैं पीछे पीछे सिमरन स्टाइल में दौड़ कर आउंगी”।
हम दोनों भाई बहन एक दूसरे का मुँह देखते रह गए। अब चूँकि वो हमारी बड़ी बहन थी तो ना कैसे करे।
अब आगे आप लोग इमैजिन कर लीजिये, आगे आगे साईकिल और पीछे पीछे हमारी सिमरन दी।
साल बीतते गए नई मूवी आती गई, पर हमारी दी के सर से DDLJ का भूत उतरने का नाम ही नहीं ले रहा था।
अब हमारी सिमरन दी शादी लायक हो चली थीं। उन्हें भी अपने राज का बेसब्री से इंतज़ार था।
पर राज से पहले दी की लाइफ में एंट्री हुई कुलजीत की, (DDLJ का कुलजीत तो याद ही होगा आप सब को )
एक दिन हमारे घर, दूर के एक रिस्तेदार आये उनके साथ एक लड़का भी आया था। आज सभी घरवाले उनकी ही आवभगत में जुटे थे।
पूछने पर मम्मी ने बताया की जो लड़का साथ आया है, पापा उससे दी की शादी कराने की सोच रहे थे।
हमने जब खिड़की से झक कर देखा तो मूछ वाला वो लड़का, लड़का कम अंकल ज़्यादा दिख रहा था।
ऐसा लगा मानो भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री के मनोज तिवारी सीधा हमारे घर ही आ गए हो।
अब भला शाहरुख़ के सपने देखने वाली हमारी दी को मनोज तिवारी कैसे भाए।
“मैं इस अंकल से शादी नहीं करुँगी”, दी तिलमिला कर बोली।
अरे इसमें बुराई क्या है, सुन्दर है और सुना है C.A है। मम्मी ने पलट कर जवाब दिया।
“C.A… my foot” अभी आती हूँ।
आप यकीन नहीं करेंगे, दी उन दिनों ICWA की तैयारी कर रही थीं तो उसने अलमारी से एकाउंट्स की सबसे मोटी किताब निकाली और पन्ने पलटते हुई उन लोगों के कमरे में जा पहुंची।
“नमस्ते चाचा जी ”
अरे बेटा आओ, इनसे मिलो ये हैं बबलू ।
दी ने भी मुँह बना कर नमस्ते कर दी।
हम्म.. भइया आप CA है तो ज़रा मुझे इस सवाल में हेल्प कर दीजिये।
जब तक बबलू जी “भइया” शब्द के सदमे से उभरते, तब तक दी ने वो मोटी बुक उनके सामने रख दी।
अब बबलू जी अपनी सारी शक्ति , ताकत, और जान झोक कर भी वो सवाल हल नहीं कर पाएं और फिर बोले की
“थोड़ा टफ सवाल है और हम CA नहीं B .COM किये है।
पीछे से चाचा जी बोले “हाँ.. हाँ.. वही CA ,B.COM एक ही बात है ।
पापा को चाचा की बात पर गुस्सा तो आया पर उन्होंने जताया नहीं.. और दी अपने मिशन में कामयाब हो गई।
मुझे याद है उस दिन रिश्ता कैंसिल होने की ख़ुशी में हम तीनो भाई बहनो ने पार्टी करी थीं।
पर दी को अपने राज का इंतज़ार अभी भी था।
तभी एक दिन एक और रिश्ता आया, इस बार लड़का फोटो में स्मार्ट और गुड लुकिंग लग रहा था और पढ़ा लिखा भी अच्छा था।
अब इससे पहले की पापा शादी के लिए इस बार भोजपुरी इंडस्ट्री से निरहुआ को ले आये, दी ने झट से हाँ कर दी ।
फिर फाइनली हमारी सिमरन दी को उनका राज मिल ही गया।
आज राज और सिमरन के दो बेटे भी हैं।
अब बस हमारी (सिमरन) दी को इंतज़ार है राज के साथ स्विट्ज़रलैंड की हसीन वादियों में शिफॉन की साड़ी पहन कर “तुझे देखा तो ये जाना सनम” पर परफॉर्म करने का।
भगवान करे सिमरन की ये मुराद भी जल्द पूरी हो|”दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे ” मूवी को आज 25 साल पूरे हुए है। पर आज भी राज और सिमरन की यादें हमारे दिलों मे तरो ताज़ा है।
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I am a Communication Professional with more than 13 years of rich experience in Public relations, Media management, Marketing and Brand promotion. Currently working as a Head- communication for an IT firm.
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Rama Dubey
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