आज भी हरे हैं वो जख़्म !

“शोभा जल्दी करो, अगर देर हो गई तो शाम की आरती मिस हो जाएगी”, बाथरूम का दरवाजा नॉक करते हुए अमित बोला।

“हाँ हाँ बस दो मिनट| तब तक तुम राहुल को तैयार कर दो ना प्लीज”|

आज मैं अपने पति अमित, 7 साल के बेटे राहुल और 5 साल की बेटी रूही के साथ केदारनाथ दर्शन को आयी थी। बचपन से ही मैं शिव भक्तनी रहीं हूँ, शायद इसलिए इस बार की छुट्टियों में मैंने अमित से केदारनाथ जाने की बात कही। जिस पर अमित पहले तो थोड़ा हिचकिचाये पर फिर हाँ कर दीं।

आज शाम को हम केदारनाथ मंदिर बाबा के दर्शन करने गए। पिछले कुछ दिनों से मौसम थोड़ा ख़राब था। तीन दिन से लगातार बारिश हो रही थी और आसमान से बिजली की गड़गड़ाहट मानो दिल दहला देने वाली थी। आस पास के स्थानीय लोगों ने बताया कि ऐसी बारिश केदार घाटी में पहली बार देखी है। लोगों ने बताया कि आसपास की नदियां भी अब पूरे उफान पर थीं। ऐसे मौसम को देख कर हमने भी फैसला किया कि आज दर्शन करके कल सुबह होते ही वापस रवाना हो जाएंगे।

लाइन में लगे लगे आखिरकर हमें केदार बाबा के अच्छे दर्शन हुए। बाबा को प्रणाम कर मैंने उनसे अपने छोटे से परिवार की सलामती की दुआ मांगी। दर्शन कर हम मंदिर से बाहर आये। जैसे-जैसे वक्त बीत रहा था, बारिश और तेज़ होती जा रही थी, लोगों के चेहरे पर एक अनजाना सा डर साफ़ दिख रहा था। दर्शन कर हम अपने होटल में लौटे तो देखा की होटल लोगों से खचाखच भरा था।

 

कड़कती बिजली और भयावह बारिश जैसे किसी आने वाले बड़े संकट की ओर इशारा कर रही थी। लग रहा था मानो स्वयं भगवान शिव ने आज रौद्र रूप धारण किया हो।

हम किसी तरह अपने कमरे में पहुंचे और मैं अपने दोनों बच्चों को अपने सीने से लगाए एक कोने में बैठी ही थी की इतने मे ज़ोर से एक धमाके की आवाज से सारा माहौल दहल उठा।

हमने भाग के अपनी खिड़की से झांक कर देखा तो मंदिर के ऊपर की पहाड़ियों से पानी का तेज सैलाब, जिसमें बड़े बड़े पत्थर भी बहे चले आ रहे थे, तेजी से मंदिर की ओर आ रहा था।

कुछ ही पलों में पानी का वो सैलाब आस पास के होटल, दुकानों, लॉज सभी को अपने साथ बहा कर ले गया। पानी का बहाव इतना तेज़ था कि उससे हमारी कमरे की खिड़कियां गड़गड़ाने लगी मानो जैसे कोई भूकंप आया हो। देखते ही देखते हमारे होटल का एक हिस्सा टूट कर बह गया और अब चारों तरह अफरातफरी मच गयी। लोग अपनी जान बचाने के लिए होटल से बाहर निकल कर भागे।

मैंने अपनी बेटी को और अमित ने हमारे बेटे को गोद में लिया और हम भी बाहर की ओर भागे। कुछ लोग सबको पहाड़ों की ओर जाने के लिए बोल रहे थे। पानी से भीगे और मिटटी से सने हम लोग ठण्ड में ठिठुर रहे थे, पर अब बच्चों को अपनी अपनी गोदी में लिए हम लोग भी पहाड़ों की ओर भागे।

हमारे पाँव लगातार बिना रुके पहाड़ों की ओर बढ़ रहे थे। पहाड़ों के पास बहती नदी का उफान देख कर दिल बैठा जा रहा था। की तभी अचानक अमित का पैर फिसल गया| मैंने तुरंत जा कर उनका हाथ पकड़ा, पर मिटटी गीली होने से मेरे भी पैर फिसलने लगे। उन्हें शायद इस बात का आभास हो चुका था कि अब अमित और राहुल में से किसी एक को ही बचाया जा सकता था।

 

उन्होंने मुझे राहुल को ऊपर खींचने को कहा। मैंने एक हाथ से राहुल को खींचा और मेरा दूसरा हाथ अमित के हाथों में था। मेरे हाथ से अमित का हाथ अब फिसला जा रहा था। मुझे आज भी याद है अमित की वो निगाहें जो मुझे शायद अंतिम विदाई दे रही थीं। हमारी सलामती के लिए अमित ने अपना हाथ मेरे हाथों से छुड़ा लिया।

अमित मेरी आँखों से अब ओझल हो पहाड़ों की झाड़ियों में कहीं गुम हो गया था। उस एक पल में जैसे मेरे शरीर से मेरी भी आत्मा निकल गई थी| तभी जोर से बिजली की गड़गड़ाहट मानो मुझे उस सदमे से उभारने के लिए गरजी। मेरे बच्चे अब डर से मुझसे आ कर लिपट गए। अब मुझे अपने बच्चों की जान बचानी थी।

रूही को गोदी में लिए और राहुल का हाथ थामे मैं भी अब बाकि लोगों की साथ पहाड़ियों की ओर दौड़ने लगी। रस्ते मे जहाँ नज़र पड़ती पानी में बहती लाशे ही दिखती। किसी तरह अब मैं अपने बच्चों को ले कर कुछ लोगों के झुण्ड में जा कर कर बैठी।

मेरे बच्चों के कपडे भीगे थे और वो सर्दी से ठिठुर रहे थे। सामने एक पिन्नी की आड़ लिए एक परिवार सर ढके बैठा था। मैंने उनसे अपने बच्चों को भी बिठाने की गुजारिश की। वे मान गए। पिन्नी के बाहर बैठ, मैंने पूरी रात बस भगवान से एक ही प्रार्थना की कि अमित की रक्षा करना। मेरा परिवार बिखरने मत देना। मेरे सामने की ओर एक बूढ़ा आदमी भी बैठा ठिठुर रहा था, सवेरे आंख खुली तो शायद ठण्ड से अब वो जिन्दा नहीं था। उनकी लाश मेरे सामने ही पड़ी थी।

कुछ ही देर में सेना के जवान हमारी सहायता कि लिए वहां पहुंचे और हमें सुरक्षित जगह पहुंचाया। वहाँ हमें कुछ कपड़े और कुछ खाना भी मिला। रात का वो मंजर मानो अब भी सबकी आँखों के सामने ही था। लोग अपनों को ढूंढ कर बिलख बिलख कर रो रहे थे।

बच्चों का हाथ थामे और मन में एक आस लिए मैं भी चारों तरफ अमित को ढूंढ रही थी। पानी का वो तेज सैलाब और गड़गड़ाहट, मेरी उम्मीद नहीं तोड़ पाया था| मुझे यकीन था कि मेरे केदार मेरा परिवार कभी टूटने नहीं देंगे कि तभी मैंने सामने से अमित को चारों तरफ बेचैनी से हमें ढूढ़ते देखा।

बच्चे, पापा-पापा कह दौड़ के अमित से लिपट गए और मैं सुन खड़ी अमित को एक टुक देखती रह गई। अमित को यूँ अपने सामने सही सलामत देख, मेरे आँखों के आंसू जैसे भगवान शिव को मेरे परिवार को मौत के मुँह से निकालने का शुक्रिया कर रहे थे।

17 जून 2013 में उत्तराखंड और केदार घाटी में आयी उस त्रासदी में हज़ारों लोगों ने अपनी जान गवाई और हज़ारों लोग लापता भी हुए। उसी त्रासदी से सैकड़ों गांव भी पूरी तरह बर्बाद हो गए थे। कड़ी मेहनत के बाद पुलों और सड़को को फिर से ठीक किया गया और दस महीने बाद भक्तों के लिए मंदिर के कपाट फिर से खोले गए।

उस त्रासदी को बीते, भले ही सात साल हो गए हों पर उस रात के वो जख्म आज भी सभी के दिलों में हरे हैं।

केदार नाथ त्रासदी के सात साल होने पर मैंने यह काल्पनिक घटना लिखी है।

अगर आपको मेरी यह कहानी पसंद आयी हो तो मुझे कमेंट करके ज़रूर बताएं ।

 

धन्यवाद!

 

Disclaimer: This blog was originally posted on Momspresso.com. This is a personal blog. Any views or opinions represented in this blog are personal and belong solely to the blog owner.

About The Author

Rama Dubey

I am a Communication Professional with more than 13 years of rich experience in Public relations, Media management, Marketing and Brand promotion.  Currently working as a Head- communication for an IT firm.

Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments

Related Blogs