मुझे भी “माँ” चाहिए !

आज जब नन्हा राहुल आंखे मलता हुआ उठा तो आश्रम में सभी लोग व्यस्त थे। आज आश्रम के आंगन की साफ़ सफाई और सजावट हो रही थी। पांच साल का नन्हा राहुल प्रभु कुटीर अनाथ आश्रम में और बच्चों के साथ रहता था। सामने सजावट का रंग बिरंगा सामान देख राहुल ने रितु दीदी, जो राहुल के साथ उसी आश्रम में रहती थी, से पुछा “दीदी आज ये सब क्या हो रहा है”?

“राहुल आज यहाँ कोई अपने बच्चे का बर्थडे मनाने आ रहा है, इसलिए ये सब तैयारियां हो रही हैं”।

“अरे वाह…! बर्थडे.. !! मतलब केक, गुब्बारे और गिफ्ट्स भी मिलेंगे” राहुल ख़ुशी से बोला।

“हाँ हाँ सब मिलेगा, पहले जा कर नहा लो और आ कर तैयारियों में मदद करो” रितु राहुल को समझाते हुए बोली।

बर्थडे का नाम सुनते ही राहुल झट से नहा के सबके साथ गुब्बारों की सजावट में लग गया। दो घंटे की मेहनत के बाद आश्रम का आंगन अब पूरी तरह से तैयार था। चारों तरफ गुब्बारे, बीच में एक बड़ी से टेबल, साइड में एक छोटी टेबल जिसपर बच्चों के लिए फेस मास्क, शोर शराबा करने की लिए सीटियाँ और भी बहुत कुछ रखा था।

वैसे तो आश्रम में पहले भी बाहर के लोग बर्थडे सेलिब्रेशन के लिए आते थे, पर इस बार राहुल कुछ ज़्यादा ही खुश था, शायद अब वो ये सब समझने लायक जो हो चुका था।

“रितु दीदी मेरा बर्थडे कब आएगा”? दीदी आप लोग मेरा बर्थडे ऐसे क्यों नहीं मानते”? दीदी की चुन्नी खींचते हुए राहुल उछल उछल के ना जाने कितने ही सवाल रितु से पूछता।

थोड़ी ही देर में आश्रम के मालिक दीनानाथ जी के साथ, कपूर परिवार के सभी लोग भी आ पहुंचे जिनके लिए आँगन सजाया गया था। राहुल सभी बच्चों के साथ लाइन में खड़ा था। आज कपूर परिवार के बेटे सूरज का जन्मदिन था। सूरज उम्र में राहुल जितना ही था और आज वो अपना पांचवा जन्मदिन मनाने आश्रम आया था।

सुन्दर सी टीशर्ट और जीन्स पहने सूरज अपनी माँ का हाथ पकड़े आँगन की ओर आ रहा था। सूरज के पापा हाथो में बच्चों के लिए कुछ गिफ्ट्स लिए सूरज के साथ ही चल रहे थे और पीछे सूरज के दादा दादी थे।

राहुल की मासूम आंखें कभी सूरज को देखती तो कभी सूरज की माँ को।

सूरज की माँ सूरज के सिर पर प्यार से हाथ फेरती, उसके गलों और माथे को प्यार से चूमती, चलते चलते जब सूरज थोड़ा लड़खड़ा गया तो  सूरज की माँ ने झट से उसका हाथ थाम लिया और उसके कपड़ों पर लगी मिटटी झाड़ने लगी। फिर उसे गुदगुदी कर हंसाने लगी।

राहुल चुप चाप खड़ा ये सब देख रहा था, कुछ देर देखते देखते उसने सूरज की माँ की ओर उंगली दिखाते हुए बड़ी उत्सुकता से रितु से पुछा: “दीदी ये कौन है”?

“ये उसकी माँ होगी, देख न कितना प्यार कर रही है उसे” रितु ने कहा।

“दीदी, माँ इतना प्यार करती है क्या?” राहुल उदास हो बोला।

“हाँ, अब सवाल जवाब बंद करो और आगे चलो, देखो केक कटने वाला है” रितु, राहुल का हाथ पकड़ के आगे ले जाते हुए बोली।

सूरज के केक काटते ही चारों तरफ तालियों की गड़गड़ाहट और स्पीकर पर बर्थडे सांग्स बजने लगे। सूरज की माँ ने आगे बढ़ कर सूरज को केक खिलाया, फिर सूरज के पापा ने सूरज को गोदी में ले कर गानों की धुन पर जम कर डांस किया। दूसरी तरफ बच्चे भी गानों की धुन पर झूम रहे थे। पर राहुल एक कोने में खड़ा एक टुक सब देख रहा था कि इतने में सूरज की माँ उसके पास केक ले कर आयीं।

“बेटा आप यहाँ अकेले क्यों खड़े हो? आपने केक नहीं लिया?”

राहुल, सूरज की माँ की ओर एक-टक देखता रहा।

“अच्छा मैं आपको अपने हाथों से खिला देती हूँ, मुँह खोलो …”

सूरज की माँ ने जैसे ही केक का टुकड़ा राहुल की ओर बढ़ाया, उसके आंसू बहने लगे और वो ज़ोर से रोने लगा। राहुल को रोता देख रितु उसे कमरे में ले आयी।

“क्या हुआ राहुल”? तुम रोने क्यों लगे? तुम्हे केक नहीं चाहिए? क्या चाहिए तुम्हे, मुझे बताओ मैं ले कर आती हूँ बाहर से।”

अपने आँखों के आँसू पोछते हुए राहुल बोला “मुझे भी “माँ” चाहिए”।

रितु समझ नहीं पायी कि अब आगे राहुल को क्या कहे और उस नन्हे बच्चे को कैसे समझाए कि वो अनाथ है। फिर रितु ने कमरे में रखे भगवान जी की मूरत की ओर इशारा करते हुए राहुल को समझाया कि राहुल तुम भगवान जी से रोज़ प्रार्थना करोगे तो वे तुम्हारे लिए भी एक “माँ” को जरूर भेजेंगे।

बस फिर क्या था, भगवान जी के सामने राहुल अपने नन्हे हाथ को जोड़े और अपनी आँखों में आंसू लिए, प्रार्थना करने लगा “हे भगवान मुझे भी माँ दे दो”।

अब शाम होने को थी, दोपहर का फंक्शन खत्म कर अब सभी साफ़ सफाई में लगे थे और बच्चे जन्मदिन में मिले रिटर्न गिफ्ट को खोल कर खुश हो रहे थे। पर राहुल के चेहरे पर अभी भी उदासी थी। इतने में दीनानाथ जी वहां आ पहुंचे, सभी बच्चों को खिलौनों से खेल कर खुश होता देख वे भी खुश थे कि इतने में उनकी नज़र राहुल के उदास चेहरे पर पड़ी। पूछने पर रितु ने उन्हें सारा हाल कह सुनाया। उन्हें राहुल पर दया आ गयी।

दीनानाथ जी रात भर इसी सोच में डूबे रहे कि राहुल को कैसे एक नया परिवार दिलाएं। बर्थडे की खुशियां मानने तो सभी अमूमन आश्रम आ ही जाते हैं, पर जब बात बच्चा गोद लेने की हो तो सब सोच में पड़ जाते हैं| बस इसी सोच में दीनानाथ जी ने रात जागते ही गुज़ार दी।

आज इस बात को दो एक महीना बीत चुका था। राहुल अब पहले की ही तरह दिन भर मस्ती करता और पूरे आश्रम में धमाल मचाता। पर इन सब में भी उसे अपनी रितु दीदी की बताई वो बात याद थी। अब वो दिन में एक बार भगवान के आगे “माँ” की गुज़ारिश ज़रूर करता।

कहते हैं न, भगवान बच्चों की प्रार्थना जल्दी सुनते हैं तो आज आश्रम में ज्योति और दीपक बच्चा गोद लेने आये थे। ज्योति और दीपक की शादी को अब 15 साल हो गए थे, पर किन्ही कारणों से ज्योति माँ नहीं बन पायी थी| इसलिए उन्होने बच्चा गोद लेने का फैसला किया।

दीनानाथ जी ने उन्हें राहुल के बारे में बताया और राहुल को अपने ऑफिस में बुलवाया। राहुल को इन सब के बारे में कुछ पता नहीं था। राहुल ऑफिस में आया। राहुल का मासूम चेहरा देख ज्योति का दिल पिघल गया। वो राहुल के पास गयी और घुटने के बल बैठ कर उसका हाथ पकड़ बोली : “आपको “माँ” चाहिए ना”?

राहुल ने झट से गर्दन हिला कर हाँ कर दी।

ज्योति उस पल अपने आंसू ना रोक पायी, आखिर बच्चे का प्यार पाने को वो भी इतने साल तरसी थी। राहुल के हाथों को चूमते हुए वो बोली “मैं आपकी माँ हूँ, मुझे भगवान जी ने आपके पास भेजा है”।

ये सुन राहुल ख़ुशी से खिलखिला उठा और “माँ” कह ज्योति के गले लग गया। अब दोनों आपस में गले लग रोने लगे। आज एक माँ को उसका बच्चा और एक बच्चे को उसकी माँ जो मिल गयी थी।

दोस्तों, हमारे देश के अनाथ आश्रमों में आज भी ऐसे कई राहुल है जो माँ बाप के प्यार से वंचित है और जो आज भी एक माँ की राह तक रहे है। हमें जरुरत है तो बस अपना हाथ बढ़ा कर उन मासूमो को अपनाने की जिससे उन मासूमो को भी परिवार का सुख मिल पाए।

अगर आपको मेरा यह ब्लॉग पसंद आया हो तो मुझे कमेंट बॉक्स में लिख कर जरूर बतायें ।

धन्यवाद !

 

Disclaimer: This blog was originally posted on Momspresso.com. This is a personal blog. Any views or opinions represented in this blog are personal and belong solely to the blog owner.

About The Author

Rama Dubey

I am a Communication Professional with more than 13 years of rich experience in Public relations, Media management, Marketing and Brand promotion.  Currently working as a Head- communication for an IT firm.

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