धड़कन

उस दिन घड़ी की सुई शायद कुछ ज्यादा ही तेज़ चल रही थी और समय बीतता जा रहा था। दस बजे की अपॉइंटमेंट थी और अभी ढाई बजने को थे। दिल्ली के जाने माने IVF सेंटर में मैं और मेरे पति पिछले चार घंटे से इंतज़ार कर रहे थे। ऐसा नहीं था कि इतना लम्बा इंतज़ार हम पहली बार कर रहे थे। बीते कुछ सालों से हम दिल्ली NCR के लगभग हर जाने माने डॉक्टर, वैध और हकीम के चक्कर लगा चुके थे, इसलिए आज का ये इंतज़ार लम्बा नहीं लग रहा था।

आखिरकार इंतज़ार की घड़ी ख़त्म हुई और हम डॉक्टर से मिले। जिस तरह एक निसंतान दम्पति बड़ी आस लगाए एक डॉक्टर से मिलता है, ठीक वैसे ही हम भी बड़ी उम्मीदे ले कर उनके पास आए थे।

डॉक्टर ने मेरी सारी रिपोर्ट्स पढ़ी और मुझे नॉर्मल कन्सीव ना कर पाने के पचास कारण गिना दिए। आपका फ़ॉलोपीन ट्यूब ब्लॉक है, आपका यूटेरस कमजोर है वैगरह वैगरह। उन्होंने हमें सब समझाया और सुझाया कि हमें IVF करवाना चाहिए। उन्होंने हमें IVF के सक्सेस रेट जो 50% से भी कम होता है और तकरीबन 2 लाख का खर्च (जो कि एक बार का IVF का खर्चा होता है), बताया। हमने भी बिना किसी देरी के हाँ कर दी। अब मन में ख़ुशी की लहर सी दौड़ रही थी। मन में एक आस जागी कि अब हमारे घर भी खुशियां आएंगी।

 

कुछ ही दिनों में पहला IVF का प्रोसेस शुरू हुआ, जिसमें मुझे प्रोसेस से पहले तक़रीबन एक हफ्ते तक, दो-दो इंजेक्शन रोज़ लगने थे। अब मैं, ग़ाज़ियाबाद (यूपी) से दिल्ली के जनक पूरी का डेढ़ घंटे का सफर तय करके रोज़ एक हफ्ते तक जाती और इंजेक्शन लगवा कर आती। सच मानो तो इंजेक्शन और ड्रिप का दर्द और सफर की थकान आने वाली ख़ुशी के आगे कुछ भी नहीं थी।

खैर IVF का प्रोसेस पूरा हुआ और उसके बाद भी मुझे हर हफ्ते एक इंजेक्शन और एक ड्रिप के लिए जाना होता, जिसका हर हफ्ते का खर्चा 4  हज़ार का था और जो हमें पहले नहीं बताया गया था।

दिन बीतते गए और आज IVF के बाद मेरी पहली रिपोर्ट आनी थी। डॉक्टर ने बताया कि IVF तो कामयाब रहा पर फ़ीटस अंदर बढ़ नहीं रहा। यानि मेरी माँ बनने की ख़ुशी चंद हफ़्तों की ही थी। अंत में कुछ दवाओं से फ़ीटस को अबो्र्ट किया गया। डॉक्टर से मिले तो उन्होंने बताया कि अक्सर पहला IVF केस कामयाब नहीं होता, इसलिए हमें दोबारा IVF करवाना चाहिए। पर इस दूसरे प्रोसेस में फिर से डेढ़ लाख रुपए लगेंगे। हमने डॉक्टर के कहने अनुसार ही किया।

और मेरा IVF का दूसरा एटेम्पट किया गया। फिर से वही इंजेक्शन और ड्रिप्स का सिलसिला शुरू हो गया। इस बार IVF की अच्छी बात ये थी कि इस बार की रिपोर्ट्स में पहले के मुकालबे फ़ीटस बढ़ रहा था। कुछ हफ्ते के बाद हमें हार्टबीट यानि धड़कन का अल्ट्रासाउंड करवाना था। आप यकीन नहीं करेंगे आज हम दोनों कितना एक्साइटेड थे, मेरी कोख में पल रहे बच्चे की धड़कन सुनने के लिए। और हों भी क्यों ना, इतने दिन की मेहनत और पेन का नतीजा वो धड़कन ही थी। डॉक्टर ने अल्ट्रा साउंड करना शुरू किया, काफी देर की कोशिश के बाद वो थोड़ा निराश लगा।

 

उसने बताया कि इस बार फ़ीटस बढ़ा जरूर था, पर फ़ीटस में धड़कन नहीं आयी थी। हम समझ ही नहीं पाए कि हम कैसे रियेक्ट करते। डॉक्टर के पास रिपोर्ट ले गए तो डॉक्टर ने भी कुछ ऐसा ही बताया और कहा कि चूँकि अब फ़ीटस थोड़ा बड़ा हो गया है तो मुझे एबॉर्शन करवाना पड़ेगा। कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि जिस क्लिनिक में अपना बच्चा पाने का सपना संजोये आउंगी वहां एबॉर्शन भी करवाना पड़ेगा। ऑपेरशन थिएटर में ले जाते वक़्त नर्स जिससे मेरी अब अच्छी जान पहचान हो चुकी थी वो भी उदास खड़ी थी।

उस दिन मेरा दिल टूटा ज़रूर था पर मैंने अभी हिम्मत नहीं हारी थी। खैर एक बार फिर डॉक्टर ने हमें तीसरी बार भी IVF ही सुझाया, जिस पर मैं बोल पड़ी “मैम अब मुझमें ना फिजिकल, ना इमोशनल और ना ही फाइनेंशियल हिम्मत बची है कि मैं फिर से IVF करवाऊं। अब मुझे थोड़ा रेस्ट चाहिए और हम वहां से उठ कर चले आये।

इन सबके बाद अब मुझे ज़िन्दगी को फिर से हस्ते मुस्कुराते जीना सीखना था और जो मैंने किया भी। मैंने जल्दी ही अपना ऑफिस फिर जाना शुरू किया। इन सबके बीच लोगो ने हमें कई और भी डॉक्टर्स सुझाये, हम ने सबकी बात का मान रखा और डॉक्टर से मिलने भी गए।

कुछ डॉक्टरों ने हमें एग डोनर सुझाया तो एक ने तो हमें सरोगसी तक सुझा दी। और यहाँ ऑफिस का काम का टेंशन भी बढ़ता जा रहा था तो एक दिन सबसे परेशां होकर मैंने सब छोड़ने का फैसला लिया।

 

अगले दिन ऑफिस से रिजाइन कर आयी और पति से बोला : कही दूर जाना है मुझे, इस भागती दौड़ती जिंदगी से। ये मेरी स्तिथि बहुत अच्छे से समझ रहे थे, इसलिए इन्होने हामी भर दी।

हमने कश्मीर का एक हफ्ते का प्लान किया।

सोचा घूम कर वापस आउंगी फिर नयी नौकरी के साथ एक नयी ज़िन्दगी शुरू करुँगी। और अब किसी और इलाज के चक्कर में नहीं पड़ूँगी और कुछ साल बाद एक बच्चा गोद ले लुंगी। कोख से जन्म दे कर ही माँ नहीं बना जाता, माँ , एक एहसास है और गोद लिए बच्चे से भी मैं माँ बन सकती हूँ।

आज हम कश्मीर से वहां की हसीं वादियों की सुनहरी यादें ले कर, घर लौट आए थे। वो डल झील, पहलगाव, गुलमर्ग के पहाड़ों पर सफ़ेद बर्फ की चादर, ऐसे ही कश्मीर को धरती का स्वर्ग नहीं कहा जाता।

अब मैं तरोताज़ा हो कर लौटी थी और एक नौकरी का ऑफर भी हाथ में था। कुछ दिनों में मेरी जोइनिंग भी थी पर मैंने नोटिस किया की आजकल मुझे भूख ज़्यादा ही लगने लगी थी और थकान भी बढ़ गई थी। बिना कुछ काम किये भी मैं थक कर बैठ जाती।

फिर मैंने सोचा की नया जॉब ज्वाइन करना है, ऐसे में इतनी थकान सही नहीं ।अगले ही दिन अपने फॅमिली डॉक्टर को दिखाया।

उन्होंने नब्ज़ चेक की औऱ मैंने उन्हें बताया की एक ऑपेरशन के बाद से अब मुझे पीरियड्स नहीं आते। उन्होंने मुझे एक दवा दी, चुकी दवा हैवी डोज़ की थी तो दवा खाने से पहले प्रेगनेंसी चेक करने को कहा, जिस पर मैंने हँसते हुए कहा: “अंकल आप निश्चिन्त रहिये, प्रेगनेंसी तो नहीं होगी इतना मुझे पता है”। फिर भी आप कहते हो तो चेक कर लूंगी।

 

फिर क्या था डॉक्टर की तसल्ली के लिए किट ले आयी और इन्हे बिना बताये चेक किया। किट देख कर मैं यकीन नहीं कर पा रही थी क्योंकि इस बार दो लाइन थी यानि रिपोर्ट पॉजिटिव थी। हर बार सिंगल लाइन देखने की आदत थी, तो इस बार दो लाइन पर मुझे यकीन ही नहीं हो रहा था। बाहर आ कर इन्हे देख कर मेरी आँखों में आंसू आ गये, पर मुँह से शब्द नहीं निकल पा रहे थे। इसलिए बस किट घुमा कर दिखा दी।

पता नहीं क्यों इस बार हम दोनों को ही यकीन नहीं हो रहा था। हमने ये बात किसी को नहीं बताई और अगली सुबह डॉक्टर से मिले| उन्होंने हमें प्रेगनेंसी कन्फर्म करने के लिए अल्ट्रासाउंड करवाने को कहा। अल्ट्रासाउंड रूम में डॉक्टर आयी और सब चेक किया और स्क्रीन में मुझे फ़ीटस के बारे में बताने लगी। मैंने अपने पति को रूम में बुलवाने को कहा। डॉक्टर का, इस तरह इन्हे रूम में बुलाने पर ये डर गये। अब ये मेरे पास ही खड़े थे। डॉक्टर ने बताया कि आपका बच्चा अब 7  हफ्ते का हो चुका है और साउंड ऑन करके उन्होंने हमें हमारे बच्चे की धड़कन सुनवाई।

 

यहाँ एक ओर पूरे रूम में धड़कन की आवाज गूंजने लगी और वहां हम दोनों की आँखों से ख़ुशी के आंसू बहने लगे। वो कहते हैं ना, आज भी चमत्कार होते हैं| उस दिन हमने भगवान का चमत्कार साक्षात देखा था। उस दिन पाँच फेल IUI और दो फेल IVF के बाद, बिना किसी इलाज के भी मैंने कंसीव किया और आज पहली बार अपने बच्चे की धड़कन सुनी।

 

उस दिन ये एहसास हुआ कि डॉक्टर सिर्फ एक फ़ीटस बना सकता है, पर उसमें जान तो भगवान ही डालते हैं। उसके बाद मेरी पूरी प्रेगनेंसी बिना किसी कम्प्लीकेशन के अच्छे से बीती और फिर नौ महीने बाद मेरे यहाँ एक नन्ही परी आयी, जिसने हमारे जीवन में खुशियों के रंग भर दिए।

दोस्तों, आजकल की भागती दौड़ती जिंदगी और बदलती जीवन शैली के तहत, इंफेरटिलिटी के मामलों में पहले से कई ज्यादा इजाफा हुआ है। कई बार तो ये महिलाओं में डिप्रेशन का एक कारण भी बन जाता है। अपने अनुभव से मैंने ये जाना कि स्ट्रेस या तनाव इंफेरटिलिटी का मुख्य कारण होता है। इन सब में आपको जरूरत है तो बस थोड़ा धैर्य और एक सही डॉक्टरी सलाह की।

अगर आपको मेरी यह कहानी पसंद आयी हो तो मुझे कमेंट करके ज़रूर बताएं ।

धन्यवाद !

 

 

Disclaimer: This blog was originally posted on Momspresso.com. This is a personal blog. Any views or opinions represented in this blog are personal and belong solely to the blog owner.

About The Author

Rama Dubey

I am a Communication Professional with more than 13 years of rich experience in Public relations, Media management, Marketing and Brand promotion.  Currently working as a Head- communication for an IT firm.

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Atul Pandey
Atul Pandey
3 years ago

Nice 👍

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