देश पराया, छोड़ के आ जा…

प्यारे बेटे रोहित,

कैसा है बेटा ?  तू खुश तो है ना परदेस में, माँ याद आती है वहाँ ?

पता है रोहित, आज अचानक बड़े दिनों बाद अपनी अलमारी के दराज़ में मुझे मेरी पुरानी डायरी मिली।

याद है रोहित,  तुझे बचपन में मेरी डायरी पढ़ना कितना अच्छा लगता था। तू छुप के मेरी डायरी पढता था और खुश हो जाया करता था। और जिसके लिए तेरे पापा से तुझे डाट भी पड़ती थी और तब कैसे तू भाग के मेरी गोद में छुप जाया करता था।

आज वही डायरी मिली तो जैसे बचपन की तेरी वो सारी यादें ताज़ा हो गयी और दिल भर सा आया।

पता नहीं क्यों आज बड़े अरसे बाद फिर से कुछ लिखने का मन हुआ,  दिल करता है वो सब बातें जो मैं शायद तुझे कभी बता न पाऊ वो सब इस डायरी में लिख दू ।

रोहित पता है, आज तुझे परदेस गए पुरे एक साल आठ महीने और छह दिन बीत गए है। जब से तू गया है एक एक दिन गिनती हु की कब तू लौट के आएगा और मेरी गोद में सर रख कर मुझसे ढेर सारी बातें करेगा।

बेटा मुझे पता है अगर तुझे इस बात का ज़रा भी अंदाज़ा लगेगा की तुम लोगो के बिना हमारी ज़िन्दगी यहाँ वीरान सी हो गयी है, तो तू सब छोड़ के यहाँ लौट आएगा। पर बेटा कौन माँ नहीं चाहेगी की उसका बेटा तरक्की करे, आसमान की बुलंदियों को छुए। इसलिए मैं हमेशा अपने चेहरे की उदासी को एक झूठी मुस्कान से छुपाये रखती हु।

हाँ..  जानती हु.. तुझसे हफ्ते में दो- तीन दिन बात तो हो ही जाया करती है, पर पता नहीं क्यों फोन पर बात करके मेरा जी नहीं भरता। क्या करू माँ जो हु… बड़ा दिल करता है तेरे सर पर हाथ फेर तुझे गले से लगा लू ,  तुझे अपने हाथो से खाना खिलाऊ, तुझसे जी भरके बातें करू , तेरी बातें सुनु , तुझसे कुछ कहु। .

 

अच्छा.. ये सब छोड़.. ये बता मेरी बहु और मेरा पोता  बिटू कैसा है ?

जब कभी बिटू फोन पे हमसे मिलने की ज़िद कर रो पड़ता है तब मैं और तेरे बाबा भी अपने आसु रोक नहीं पाते।

मैं तो अपना मन फिर भी पूजा पाठ में लगा के दिन काट लिया करती हु। पर तेरे बाबा घर की एक एक चीज़ में तुम लोगो की यादों को संजोते है। और तुम लोगो को याद कर अक्सर अपनी आंखे नम कर लेते है।

बेटा अब कुछ ही दिनों में सब त्यौहार भी शुरू हो जायेंगे, सड़को पर बाज़ारों में हर कही रौनक होगी। पर साफ़ सफाई और सजावट के बाद भी ये घर अब सूना सा ही लगता है। वो कहते है ना… घर की रौनक, साज सजावट से नहीं परिवार से होती है। बेटा ठीक वैसे ही, बहु, बिटू और तेरे बिना ये घर खाली खाली लगता है. इस घर की रौनक तो तुम लोगो से ही थी ।

आज भी जब खाने के लिए रोटी का निवाला उठाती हूँ तो तुम लोगो का ही ख्याल आता है।  रोहित , बचपन से ही तू खाने का बड़ा शौक़ीन है। और सिर्फ तेरे लिए ही तो मैं तरह तरह की पकवान बनाती थी। माल पुआ और लिट्टी चोखा तुझे सबसे ज़ादा पसंद था। और तब तेरा ख़राब मूड भी झट से ठीक हो जाता था।

अब तो अरसा बीत गया, कुछ पकवान बनाये। अब बनाऊ भी तो किसके लिए। हमारा तो शरीर ही उस लायक नहीं रहा। तुझे स्वाद ले के खाते देखती थी, तो मन में ख़ुशी होती थी।

अब जब कभी तू बातों बातों में कह जाता है न की “सब कुछ है यहाँ बस माँ के हाथों का खाना नहीं ” ये सुनकर मन होता है, काश  तू सात समंदर पार न होता, काश इतनी मजबूरियां न होती, काश तुझे रोज़ अपने हाथो से बना कर खिला पाती। अब जब भी तू आएगा तुझे साथ बिठा के सब तेरी पसंद का खाना बना के खिलूँगी और तुझे नज़र भर के देखूंगी।

 

पता है.. पिछले महीने हम गुड़िया की शादी में गए थे तो सभी रिश्तेदार बखान कर रहे थे, रोहित के पापा बड़े किस्मत वाले हो आपका बेटा US में है।

तेरे पापा सबकी बात सुन कर सर हिला कर मुस्कुरा ज़रूर देते है पर उनकी उस मुस्कान के पीछे की उदासी कोई नहीं पढ़ पाया।

बेटा कहने को तो सब कुछ है यहाँ पर फिर भी कुछ अधूरा सा लगता है. कुछ कमी सी लगती है।

बेटा अब साल दर साल हम भी बूढ़े ही हो रहे है। बिना दवाइयों के तो अब शरीर भी साथ नहीं देता। वो तो तेरे पापा है जो मेरा इतना ध्यान रखते है।

आज बुढ़ापे की इस दहलीज़ पर आकर एक डर, एक ख्याल हमेशा मन में घर किये रहता है…जिसका जिक्र मैंने ना कभी तेरे बाबा से और ना तुझसे ही किया।

रोहित हमेशा एक डर मुझे परेशां करता है, की कही तुझे देखे बिना ही मुझे दुनिया को अलविदा ना कहना पड़े। कही ऐसा ना हो की तुझे एक आखिरी बार देखने का मौका भी ना मिले। बस इसी सोच में अक्सर दिल बैठा जाता है।

देख न मैं भी कैसी बातें ले कर बैठ गयी।

बेटा आज मन की सारी बातें  इस डायरी में लिख कर बड़ा सुकून मिल रहा है और मुझे पता है की जब कभी भी तू परदेस से लौट कर आएगा तो हमेशा की तरह छुप कर मेरी ये डायरी ज़रूर पढ़ेगा। और तब मेरी इन बातों को पढ़कर  हम साथ मिल के खूब हसेंगे।

बस बेटा अब जल्दी से वापस आजा ,तुझे देखने को ,तुझे गले लगाने को जी तरस गया है।

 

हमेशा खुश रहो बेटा ।

मेरी दुआए हमेशा तुम्हारे साथ है।

माँ…

 

तभी दरवाजे पर दस्तक होती है। और कोई बाहर से आवाज लगाता है।

रोहित … बेटा रोहित…

यहाँ अकेले बैठे क्या पढ़ रहे हो।

चलो बेटा, तुम्हारी माँ की अस्थि वित्सर्जन को देर हो रही है।

आँखों में आँसू लिए रोहित अपने बाबा को गले लगा रो पड़ता है।

 

हाँ बाबा… देर तो मुझसे हो गई है.. शायद बहुत देर…!!!

 

 

दोस्तों अक्सर हम तरक्की और अपने उज्जवल भविष्य की चाह में विदेश का रुख ज़रूर कर लेते है और जो एक हद तक वाजिब भी है… पर इन सब के बीच हम कहीं ना कहीं अपने अपनों की लिए पीछे छोड़ जाते है सालो का लम्बा इंतज़ार।

विदेशों में बसे अपने बच्चो से मिलने की आस में उनके माता पिता एक- एक दिन गिन -गिन गुजार देते है। इस बीच जिस दर्द और पीड़ा को अक्सर वो अपने दिल में दबा लेते है, बस उसी दुःख और पीड़ा को अपने इस ब्लॉग के माध्यम से दर्शाने की एक छोटी सी कोशिश की है। उम्मीद है आपको मेरा यह ब्लॉग आपको पसंद आया होगा।

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धन्यवाद !!

 

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About The Author

Rama Dubey

I am a Communication Professional with more than 13 years of rich experience in Public relations, Media management, Marketing and Brand promotion.  Currently working as a Head- communication for an IT firm.

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Kapil Deo Prasad Dubey
Kapil Deo Prasad Dubey
3 years ago

Very good work

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